वर्ष दो वर्ष की ही तो बात है
ये जो थाली से कौर
कौवों
को डाल रहे हो
पंडितों के इशारों पर
नाच रहे हो---
दूब की
छोर से
गंगाजल छिडक
सैलाब
ला रहे हो
नदी के तटों पर
फैली---
परछाइयां
तुम्हारी
सुबह को भी
कलुषित कर रही है
अंजुलि में भर-जल
विष अर्पित कर रहे
हो
जो,जीवित हैं--अभी
सांझ की बेला में
थके-टूटे से—
सुस्ता रहे हैं
कुछ
सांझ उनकी
जो---
बेहद
अंधियारी हैं
कुछ---
रोशन कर दो
अपनत्व के दीयों से
स्मृतियों के फूल
बहा देना---
दो
अश्रु-बूंद—
अंजुलि में भर
उनको भी कर देना
तिरोहित---
बस---
वर्ष-दो-वर्ष की ही तो बात है