Monday, 17 April 2017

आज का अखबार और दो खबर-




सुबह की बेला हो,सूरज आपकी बलकनी ने पहुंच गया हो,चिडियों की चहचहाट
सुन पा रहे हों और चाय का मग आपकी उंगलियों में फंसा हो-
और,अखबार से नजरें चुरा कर चाय की चुस्कियां चल रही हों?
यदि, ऐसा हो रहा हो तो समझिये आप सुकून में हैं.
हां,जिंदगी को कुछ देर बाद भागना ही है,रोज का काम है.
दो खबरों ने मैंने हृदय की वीना के तार छेड दिये-
यह मुहावरा अक्सर खुशी जारिह करने के लिये प्रयोग किया जाता है,हिंदी जगत में,लेकिन मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि इन परिस्थितियों में किस मुहावरे का इस्तेमाल किया जाय?
पहली खबर—मोदी जी ने कहा-हर दिन मुझसे कोई ना कोई नाराज हो जाता है.
सूरत में मल्टी स्पेशअलिटी अस्पताल का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा,१८-४-२०१७ को.
बात छोटी सी है मगर गहरी है-जहां उम्मीदें हों और उन उम्मीदों को पूरा करने वाला भी हो(मोदी जी से उम्मीदें हम सब को हैं--)तो लाजमी है-शिकायतें बनी रहना-कभी खत्म ना होना-जब तक सांस है-आस है!
तो,मोदी जी आप परेशान ना हों-हमारा सौभाग्य कि सालों बाद, आजादी के बाद-कोई तो मिला कि नजरें उठा लें और कोई समझ ले,हमे.
लेकिन, ये उम्मीदों का सिलसिला ठहरने वाला नहीं है-सांस है,जब-तक आस बंधी ही रहेगी.
दूसरी खबर-हमारे शहर में अच्छे तबके में रहने वाले एक सज्जन ने पहले पत्नि की हत्या की बाद में खुद को भी फांसी लगा ली-एक नोट लिख कर चले गये कि इस कृत्य के लिये वे ही जिम्मेवार हैं.
एक घर जहां संयुक्त परिवार रहता है-दिन दहाडे इतनी बडी घटना घट जाय और बगल के कमरे में भनक भी ना पडे--??
बात कहने-सुनने की नहीं है,समझने की है,कि हम भीड में भी नितांत हैं?
इतनी आवाजें हैं बाहर की कि खुद की आवाज सुनाई नहीं पडती कि कोई अंद्रर बैठा घुप अंधेरे में,चीख रहा है,छटपटा रहा है कि मुझे बाहर निकालो कि मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं उम्मीदों व सपनों के ढेर में-और कोई सुन नहीं पा रहा है-और एक दिन वह सब सींकचों को टेढा कर के बाहर निकल आता है—
और-खुद को आजाद कर देता है??
मगर यह आजादी कैसी एक कैद से निकल कर दूसरी कैद में स्वम अपने आप को डाल देना जहां मुक्ति नहीं है,छटपटाह है-फिर वह चीखेगा-मुझे बाहर निकालो,मुझे बाहर निकालो!!
आइये-
अपने-आप से बात करते हैं-
१.हम सपनों के साथ जन्म लेते हैं.
२.सपने या उम्मीदें या आकांक्षाएं- सब एक ही मनोभाव के रूप हैं,
झीनी सी चादर ह बीच में.
३.सपने जरूरी है चलने के लिये रोशनी की किरण,
कभी-कभी यह किरण रास्ता भी दिखाती है,कभी, भ्रम है मरुद्धान का,रेगिस्तान में,पहचान इसकी है,जरूरी?
४.हर सपने को पूरा होने के लिये वक्त का इंतजार और हर स्वप्न पूरे होने की दरकार नहीं रखते,जरूरी नहीं.
कहीं हम पूरा कर पाते हैं-कहीं आस्तित्व की मर्जी,क्या करें?
५.छोटे-छोटे सपने जो पूरे हो गये उन्हें अनुगृहित हो कर एनलार्ज कर लें!!
६.अपने-आप को छोटी-छोटी आजादी देते रहिए-
सुबह की धूप में,रात की खिली-खिली चांदनी में,नदी के तट पर बैठ कर,
कभी नांव में बैठ कर,नांव खेनी आती हो, कभी नौका-विहार करके यूं ही , कभी-कभी मनीप्लांट की पत्तियों को छूकर---जो बलकनी में यूं ही फैल रही है,
बिन मांगे!
७-और-रोज ये लाइनें दुहराइये नहीं गुनगुनाइये
ये जिंदगी फिर ना मिलेगी दुबारा!
और,दुनिया यूं ही चलती रहेगी,हम हों ना हों!!
धन्यवाद: