धवल हंस किसका---
नैतिक शिक्षा एक विषय हुआ करता था , कुछ दशक पहले तक प्राथमिक पाठों में
एक कहानी--हंस किसका --शीर्षक से.
कहानी दो राजकुमारों की है जो आपस में चचेरे भाई थे. बडे राजकुमार जिनका नाम सिदधारथ था और छोटे भाई का नाम देवदत्त.
सिदार्थ शांत भाव वा कोमल ह मन वाले जिनके मन जीवों के लिये करुणा से भरा था इसके विपरीत देवदतत आखेट के शौकीन तीर-कमान उनका मनपसंद आखेट था . सो अपने बागीचे में जब भी विचरं करने जाते अपने आखेट के शौक को अवश्य पूरा करते..
ऐसे एक अवसर पर देवदत्त ने अपने आखेट की रुचि को पूरा करते हुए आकाश में विहार करते हुए एक धवल हंस पर अपने कमान से तीर साध दिया. उस निरीह प्राणी के शरीर में वह तीर बिंध गया और कुछ क्षण में वह धवल हंस घायल हो जमीन पर आ गिरा.
सौभागयवश--घायल होकर वह बडे राजकुमार सिदार्थ के पैरों के पास आ गिरा
पीडा से छटपटाता हुआ आंखें खोले राजकुमार की ओर अपनी चोंच उठाए मूक जीव राजकुमार को निहारे जा रहा था.
राजकुमार ने उस घायल हंस को उठा कर अपनी गोद में रख लिया और अपने कोमल हाथों से सहलाते हुए उसके घाव को साफ करने लगे.घायल हंस के घाव पर औषधि का लेप कर दिया.कुछ समय बाद वह घायल हंस ठीक हो उठा और अपनी चोंच को आकाश की ओर उठा कर कुछ कहने का परयास करने लगा--मानों कि, '"उसको" को धनयवाद दे रहा हो, हंस की आंखों में आभार का गंगाजल बह रहा था
राजकुमार ने एक बार पुनः हंस को अपनी कोमल हथेलियों से सहलाते हुए धीरे से उसे आकाश की ओर उडा दिया--
नीले आकाश में धवल हंस अपने दौनों पंख फैलाए उड चला था और रजकुमार सिदधारथ मंद गति से अपने महल की ओर लौट चले.
आशा है-- इससे आगे की कहानी हम सबने पढी वा सुनी अवशय है और हो सकता है
अब,इस संदरभ से आगे--
हंस की पीडा आखेट से आगे निकल कर,मनोरंजन पर आ टिकी है और इससे भी आगे जा कर इनसानी भूख से होते हुई जिवहा के आगरह पर तब ठहरती है --जब मूक निरीह जीवों की पीडा अकलपनीय,असहनीय परिदरूशय को बयां करती हैं जो बयां हो नहीं सकती केवल शबदों में--केवल अहसास की कलम औरजब करुणा की सयाही में भीग कर दिल के पननों पर लिखी जाए
दूसरा आगरह--
इनसानी सेहत और इनसानी संतति को और अधिक पुषट करने के लिये हमें उचच कोटि का भोजन चाहिये होता है जो कि मूक पशुओं के माधयम से मिलता है अतः इसके लिये एक विषेश तरह के अनाज को खास तरीके से उगाया जाता है जिसे इन पशुओं को आहार के रूप में दिया जाता है.
अंततः इनके शरीर के जरिये हमें उचचतम आहार मिल जाता है
हमारी बातों के भी खंडन होते रहते हैं ,,होते रहे हैं,और होते रहेंगे
गैर-जरूरी बातों में ना जा कर-- बात एक ही जरूरी हैकि पीडाओं के आधार पर कया कोई सुख,सुकून की कलपना की जा सकती है?
एकजिसटेंस एक ऐसी दीवार है जिस पर जो फैंका जाये वही वापस लौट आता है.
सहासतितवऔर सहसंरकशण के बगैर हमारा आसतितव भी खोखला है.
कुछ अहसास मानवीय हैं वरन वे एकजिसटेनशियल वा एजेंशियल भी हैं जिनहें कायम रखना हमारा मानवीय कारण बनता है साथ ही खुद को मिले जीवन के लिये आभारित होने की जरूरत है साथ ही औरों के साथ हमारा जीवित रहना मेईनिंग रखता है--- हम हैं तो वे भी हैं,वे हैं तो हम भी हैं
अहसास जीने का--- अहसास जीने देने का एक ऐसा अहसास है,कि--- बस एक बात को दो तरह से कहने भर का अनदाज है
अहसासों को जिंदा रखिये .