Don’t transfer the cow’s load
to the bull.
मुल्ला नसरुद्दीन बादशाह के दरबार में,बादशाह को कोई किस्सा
सुना रहे थे.
किस्सा ऐसा कि बादशाह को कुछ समझ ना आया,
वाकई-किस्सा, किस्सा भी ना था सिवाय बे-फिजूली के-
सो,बादशाह ने एक झापड रसीदी कर दी-मुल्ला की ओर.
बेचारा-नसरुद्दीन क्या करता?
गुस्सा तो उसे भी बहुत आया कि इतने जतन से एक किस्सा गढा
था-और उसका हश्र यह हुआ.
बादशाह पर तो अपना गुस्सा निकाल नहीं सकता था,
पीछे खडे सख्श के गाल पर एक चांटा रसीद कर दिया.
वह सक्श भी समझ नहीं पाया कि यह माजरा क्या है?
मुल्ला से पूछा—यह चांटा क्यों मारा?
मुल्ला ने कहा--इसके बाबत बात में बात करेंगे अभी तो तू भी
पलट कर एक चांटा रसीद कर दे-अपने पास खडे आदमी को.
ओशो कहते हैं—
हम सभी यही कर रहे हैं-इस संसार में.
अपने क्रोध,ग्लानि,द्वेश,-विद्वेश,घृणा को दूसरों के ऊपर
फेंके जा रहे हैं-
बगैर यह जाने कि इनके कारण क्या हैं?
इनका प्रतिफलन क्यों हो रहा है?
यदि, यही जान लें तो जीवन से सभी प्रकार की नकारत्मकता चली
जाय.
रोज मर्रा के जीवन में यही तमाशा चल रहा है-
बास के द्वारा प्रताडित व्यक्ति घर आकर पत्नि को प्रताडित
करता है-
पत्नि प्रताडित हो कर बच्चों को प्रताडित कर देती है-
और-बेचारे बच्चे कहां जाय क्योंकि आज वे खुद पिट कर आए
हैं-स्कूल से.
सो,वे अपने कमरे में जाकर अपने खिलोनों को तोडने लगते हैं.
बात कहां से चली और कहां पहुंची?
आइये—
खोजे अपने गुस्से को.
जाने अपने-आप को.