निह्संदेह दो शीर्षक कौतुहूल पैदा कर रहे होगें,परंतु
कभी-कभी एक से बात बनती नहीं है,सो दो को ही लेना श्रेयकर लगा---विरोधाभास ही
पूर्ण का आधार है.गुनी कह गये हैं और ऐसा हमें भी जान पडता है.
ओशो के एक उद्धरण से जिसको मैने पढा है उनकी बहुचर्चित
मासिक ’यस ओशो’ में और उसी को आधार बना कर
मैं कुछ कहने का प्रयास कर रही हूं,एक स्वम-सोची विधा के साथ.
आशा है,पठनीय होगी---.कुछ तथ्यों को मै सुविधानुसार काट-छांट
कर रही हूं लेकिन तथ्यों को बगैर छेडे हुए. (जो कि ओशो द्वारा उद्धरित किये गये
हैं,उनकी पुस्तक ’द डिसीप्लिन आफ़ ट्रांसेडेंस’ में.)
इस धरती का प्रत्येक प्राणी एक आंतरिक्ष यात्री है,जिसके
लिये किसी ने भी कभी कोई प्रशिक्षण नहीं लिया.(अन्यथा इसके लिये हमें वर्षों की
तैयारी करनी होती किसी खास योग्यता के साथ.)
हम इस यान में ६६६०० मील प्रति घंटे की रफ्तार से आंतरिक्ष
में तैर रहे हैं,इसके साथ ही हमारी धरती अपनी धुरी पर भी १००० मील प्रति घंटे की
रफ्तार से घूम रही है.
हम हर वर्ष इस यान पर सवार होकर सूर्य का एक संपूर्ण चक्कर
लगाते हुए ५०० लाख मील की यात्रा पूर्ण कर लेते हैं.
यदि हम एक औसत आयु जीते हैं तब हम अपने जीवन में ७५ बार
सूर्य के चक्कर लगा लेते हैं जो ३७५ करोड मील के बराबर होंगे.
ये आकडें धरती की अविश्वनीय गति के हैं.
आइये इसकी केमिस्ट्री व भौतकी के बारे में भी जान लें—और उस
कलाकार,उस महावैग्यानिक,महापंडित एंव महास्वप्नकार को जानने की द्द्ष्टता कर
पाएंगे कि नहीं जिसने अपना स्वप्न साकार किया और नित-नये रंगों से इसे सजा रहा
है---पूरा करने की उसे जल्दी नहीं---निरंतर---और बस निरंतर---ऐसी अनूठी निरंतरता
को देख कवि कुछ गाये बिना रह नहीं सकता.चित्रकार कूची उठाए बिना जी नहीं
सकता---कथाकार कथनी के बिना सो नहीं सकता.
पृथ्वि नाम का यह महायान कोई जड यंत्र नहीं है,इसकी वयुमंडल
की ४३० मील मोटी परत हमको सूरज से उठे जानलेवा तूफानों व आंतरिक्षीय किरणों से
बचाती है.
इस परत में उपलब्ध आक्सीजन,कार्बनडाई आक्साइड और नैत्रोजन
प्रत्येक जीव व वनस्पति के जीवन का आधार हैं.
पृथ्वि-यान का कोई पायलट नहीं है लेकिन इसको नियंत्रण करने
के लिये हजारों अदृश्य डायल हैं जो
तापमान,आक्सीजन की मात्रा,अद्रता का स्तर आदि को नियंत्रित करते हैं और अविश्ष्ट
पदार्थों का निष्कासन भी करते रहते हैं.
हमारी धरती के नीचे टेक्टोनिक प्लेट्स हमारे पर्वतों और
महाद्वीपों का निर्माण और नियंत्रण भी
करती रहती हैं.
हमारी वायु में २१% आक्सीजन जिसके कारण सभी प्राणी जीवित रह
पाते हैं.यदि यही आक्सीजन २४% हो जाय तो सभी कुछ भस्म हो जाय.
हमारे वायुमंडल में ७८% नाइट्रोजन जो आक्सीजन को घुलनशील
बनाता है और वनस्पति के लिये खाद का काम करता है.
हमारे ग्रह के चारों ओर हजारों बिजलियों की कडक नाइट्रोजन
और आक्सीजन को मिश्रित करती है और इसे धरती पर बहा देती है जिससे सम्पूर्ण वनस्पति
को जीवन मिलता है.
इस अद्भुत गति से हमारा पृथ्वि-यान यात्रा कर रहा और हमें
आभास तक नहीं होता!!!
हम जिस छोटे से ग्रह पर रह रहे हैं वहां जीवन है,मौसम बदलते
हैं,फूल खिलते हैं,सुगंध है,संगीत है---यह पृथ्वि अनूठी है,हम भाग्यशाली हैं!!!
हमें पता भी नहीं हमें क्या मिला???
हम किसी निर्जन ग्रह पर एक पत्थर के टुकडे की नायीं पडे भी
हो सकते थे??
हमें पता नहीं हमें क्या-क्या नहीं मिला??
हम इस एक जीवित ग्रह पर एक चमत्कार हैं!!!
और कितने ही चमत्कार खुलने के लिये आतुर हैं!!!
इस चमत्कार से भी बडे चमत्कार हमारी प्रतीक्षा कर रहे
हैं----.
लेकिन वे तभी खुलेंगे जब हम इस चमत्कार के उत्सव में शामिल
हो जायं---.
इस जीवन से भी बडा और कोई चमत्कार हो सकता है???
हम चमत्कार में ही जी रहे हैं!!!
और मेरी एक कोशिश उसको खोजने की---और मैं कवि हो गुनगुनाने
लगी!!!
तू मौन सा,तू व्योम सा
तू निराकार-आकार सा
तू यहां सत्य,तू वहां व्याप्त
तू,दूर---क्षितिज तक,सागर की लहरों में
नील-शांत-अशांत,विकराल हुआ
हिम आच्छादित,शिखरों पर
इंद्रधनुष सा,व्याप्त हुआ
पिघले हिम-शिखरों पर भी
बन भागीरथ,जटा-मुक्त हुआ
जब-जब सृष्टि,क्लांत हुई
और अश्रुपूर्ण-नम-आंख हुई
तब बन किलकारी गोदी में
सपनों सा साकार हुआ
जब-जब धरती चटकी है
पेटों में भूखें पनपी हैं
तब मेघों में घिर आया तू
धरती की प्यास बुझाई है
दफन हुए,बीजों में भी
बन,नव-जीवन,फूटा है,तू
बागों में,बन बसंत,तू
रंगीन हुआ रंगोली सा,तू
भोर हुई जब-तब,गूंजा तू
सृष्टि-स्वरों में,गीतों सा तू
काल बन आया तू
बांधी जीवन की मर्यादाएं भी
बीज सरीखा बन,निर्जन जीवन का
कोख-कोख में पनपा है,तू
तू व्योम सा,तू मौन सा
तू निराकार-आकार सा.