आज हमारे परिवार की बुजुर्ग महिला का देहान्त हो गया
अपने समय में,समस्त परिवार को उनका सहयोग प्राप्त था
वे बहुतही व्यवहारिक,मान्यवीय गुणों से समपन्न ,सौम्य आदि-आदि
कितने ही अलन्कारों से उन्हे
सजाया जाय तो भी उनका वज़ूद अपनी चमक से
चमत्कारित रहा.जीवन की चाल ऐसे ही अवसरों पर समझ आती है,
केवल कुछ पल ही.
हमारे बीच से एक वज़ूद ही उठ जाता है और हम कुछ घंटे भी
उस वज़ूद को भी देख्नना भी नहीं चाहते,उसके बारे में सोचना भी नही चाहते.
कि उस जाने वाले के नाम हम अपना एक दिन भी नहीं दे पाते
आज हमारे परिवार की बुजुर्ग महिला का देहान्त हो गया.अपने समय में,समस्त परिवार को उनका सहयोग प्राप्त था.वे बहुतही व्यवहारिक,मान्यवीय गुणों से समपन्न ,सौम्य आदि-आदि कितने ही अलन्कारों से उन्हे सजाया जाय तो भी उनका वज़ूद अपनी चमक से चमत्कारित रहा.जीवन की चाल ऐसे ही अवसरों पर समझ आती है, केवल कुछ पल ही.हमारे बीच से एक वज़ूद ही उठ जाता है और हम कुछ घंटे भी उस वज़ूद को भी देख्नना भी नहीं चाहते,उसके बारे में सोचना भी नही चाहते.वही दुनियादारी वही छोटी-छोटी बातें हमारे वज़ूद को इस तरह घेरे रहती हैं कि उस जाने वाले के नाम हम अपना एक दिन भी नहीं दे पाते.जाने वाले का वज़ूद ढ्योडी से बाहर हुआ नही और हम इतने सहज हो जाते हैं कि जैसे वो हमारे बीच था ही नही.हर समय्,हर पल वही अर्थ-हीन वार्तलाप.जो उस वज़ूद से निजी रूप से जुडे होते हैं,हर हाल में उनका मस्तिष्क भी व्यस्त हो जाता है उस लेन-देन में जो कि वह पीछे छोड गया है.मैने हमेशा ही ऐसे मौकों पर महसूस किया है कि हम जीवन की पल भर की आपाधापी को ओढे ही रहते हैं,यह जानते हुए कि हम भी उसी कतार में खडे हैं,बस सवाल कुछ वक्त का है.मन विचलित होता है--५०-६० साल का वज़ूद क्या इस योग्य भी नहीं है कि उसकी राख की तपिश ठंडी हो जाए तब-तक ही सही उसे याद कर सकें और ईश्वर के द्वारा दिए अह्सास के आसुओं से उसे विदा कर सकें.जाने वाला,शायद एक ही आस के साथ जाता है कि उसके अपने उसे याद करेंगे.बस यही आस साथ होती है बाकी महल-चौबारे यहीं रह जाते हैं.आएं,थोडा सा दिल खोले,आंसुऒ के सैलाब को बहने दें,आंख बंद करके उन पलों को देखने की कोशिश करें जो हमने उस वज़ूद के साथ बिताए थे.जीवन की सच्चाई,जीवन का अंतिम सत्य इन्हीं कुछ पलों में है,आएं जीना सीखें और मरने के लिए भी खुद को राजी करें.एक छोटा सा अह्सास उनके नाम.मन के-मनके
अपने समय में,समस्त परिवार को उनका सहयोग प्राप्त था
वे बहुतही व्यवहारिक,मान्यवीय गुणों से समपन्न ,सौम्य आदि-आदि
कितने ही अलन्कारों से उन्हे
सजाया जाय तो भी उनका वज़ूद अपनी चमक से
चमत्कारित रहा.जीवन की चाल ऐसे ही अवसरों पर समझ आती है,
केवल कुछ पल ही.
हमारे बीच से एक वज़ूद ही उठ जाता है और हम कुछ घंटे भी
उस वज़ूद को भी देख्नना भी नहीं चाहते,उसके बारे में सोचना भी नही चाहते.
कि उस जाने वाले के नाम हम अपना एक दिन भी नहीं दे पाते
आज हमारे परिवार की बुजुर्ग महिला का देहान्त हो गया.अपने समय में,समस्त परिवार को उनका सहयोग प्राप्त था.वे बहुतही व्यवहारिक,मान्यवीय गुणों से समपन्न ,सौम्य आदि-आदि कितने ही अलन्कारों से उन्हे सजाया जाय तो भी उनका वज़ूद अपनी चमक से चमत्कारित रहा.जीवन की चाल ऐसे ही अवसरों पर समझ आती है, केवल कुछ पल ही.हमारे बीच से एक वज़ूद ही उठ जाता है और हम कुछ घंटे भी उस वज़ूद को भी देख्नना भी नहीं चाहते,उसके बारे में सोचना भी नही चाहते.वही दुनियादारी वही छोटी-छोटी बातें हमारे वज़ूद को इस तरह घेरे रहती हैं कि उस जाने वाले के नाम हम अपना एक दिन भी नहीं दे पाते.जाने वाले का वज़ूद ढ्योडी से बाहर हुआ नही और हम इतने सहज हो जाते हैं कि जैसे वो हमारे बीच था ही नही.हर समय्,हर पल वही अर्थ-हीन वार्तलाप.जो उस वज़ूद से निजी रूप से जुडे होते हैं,हर हाल में उनका मस्तिष्क भी व्यस्त हो जाता है उस लेन-देन में जो कि वह पीछे छोड गया है.मैने हमेशा ही ऐसे मौकों पर महसूस किया है कि हम जीवन की पल भर की आपाधापी को ओढे ही रहते हैं,यह जानते हुए कि हम भी उसी कतार में खडे हैं,बस सवाल कुछ वक्त का है.मन विचलित होता है--५०-६० साल का वज़ूद क्या इस योग्य भी नहीं है कि उसकी राख की तपिश ठंडी हो जाए तब-तक ही सही उसे याद कर सकें और ईश्वर के द्वारा दिए अह्सास के आसुओं से उसे विदा कर सकें.जाने वाला,शायद एक ही आस के साथ जाता है कि उसके अपने उसे याद करेंगे.बस यही आस साथ होती है बाकी महल-चौबारे यहीं रह जाते हैं.आएं,थोडा सा दिल खोले,आंसुऒ के सैलाब को बहने दें,आंख बंद करके उन पलों को देखने की कोशिश करें जो हमने उस वज़ूद के साथ बिताए थे.जीवन की सच्चाई,जीवन का अंतिम सत्य इन्हीं कुछ पलों में है,आएं जीना सीखें और मरने के लिए भी खुद को राजी करें.एक छोटा सा अह्सास उनके नाम.मन के-मनके