खुद को निश्चिन्त रखिये-----
आदतन नींद सुबह जल्दी खुल जाती है यदि रात को अपने नियत समाय पर सोना हो जाए और नींद क्रम सुचारू रूप से करीब तीन घंटे, दो घंटे, एक घंटे के क्रम से पूरा हो जाए.
रोजमर्रा केवल श्रम वाले कार्य नहीं होते हैं कुछ काम मानसिक स्तर पर भी करने होते हैं.
जैसे जरूरी कागजातों को क्रमबंध करके सही स्थान पर रखना ताकि, समय पर सही स्थान पर मिल जाएं.
साथ ही उन कागजातों को पुनः उसी क्रम में,उसी स्थान पर उसी योजनाबद्ध तरीके से रखने की स्वतः कृत आदत बनी रहे .
यदि कभी किसी कारणवश इस क्रम को,इस योजना को बदलना पड़े तो आवश्यक है इसे क्रमवार मस्तिष्क के डेस्टोप में ,स्मृतियों की फाइलों में क्रमबद्ध तरीके से स्टोर कर दिए जांए.
और, उनकी कोडिंग करके , शांत मन से,स्थिर शरीर से दोहरा लिया जाए.
शारीरिक श्रम के कामों को तो हम प्रतिदिन करते ही रहते हैं और आदतन उसी क्रम में करते चले जाते हैं .
और,
कभी कोइ काम आगे,पीछे हो जाए या कम हो जाए,या कि, बिगड़ जाए तो ज्यादा से ज्यादा कुछ समय का नुकसान हो जाता है या कि,सामान का.
समय तो हमारे पास वैसे ही पडा रहता है और रही सामान की बात तो हमारा दार्शनिक भाव इन सबको को---दुनिया आनी जानी,सब कुछ भ्रम है,के सत्य की पुडिया बना कर फांक लेता है.
लेकिन जरूरी दस्तावेजों,चाबियों, A T M card आदि के मामलों में स्थिति भिन्न हो जाती है यदि वे समय पर और उसी जगह पर ना मिलें.
ऐसी स्थिति में केवल मानसिक दवाब ही नहीं बढ़ता है शारिक व्यवस्था भी चरमराने लगती है.
भूख कम हो जाना, नींद का ना आना , क्रोध जो कि खुद पर कम दूसरों पर अधिक आने लगता है, और व्ववहार का बेतुका हो जाना. और भी सईड एफेक्ट हो सकते हैं निर्भर करता है व्यक्ति पर और उसके हालातों पर.
इसी सन्दर्भ में ,मैं एक घटना का जिक्र करना चाहूंगी.
कुछ कारणों से अधिकतर समय मैं अकेले ही रहती हूँ. अधिक सूरक्षा की हीनभावना के कारण सभी कमरों में ताले लगा लेती हूँ जब सोने जाती हूँ.
एक रोज सुबह जब उठी तो अन्य कमरों की चाबियाँ उस स्थान पर नहीं मिली जहां उन्हें रखती थी.
नींद पूरी तरह खुल भी ना पाई थी,शारीर भी चैतन्य ना हो पाया था मगर दिमाग तेज रफ़्तार काम करने लगा-----
ताले तुड़वाने पड़ेंगे
ताले बेकार हो जाएंगे.
नए तालों का खर्चा कितना होगा.
अभी Lock Down में कौन आएगा.
अगर कमरे बंद पड़े रहे तो घर कैसा लगेगा.
वगैरह,वगैरह---
ऐसी स्थितियां सभी के साथ,कभी ना कभी आ ही जाती हैं अब और ऐसी स्थिति से कैसे निबटते हैं---
मैंने उन दिनों कुछ नया सीखा जो कभी किताबों नहीं पढ़ा था ना ही किसी ने पढ़ाया .
अब पता नहीं कागजों की डिग्रियां कागज़ के शेरों के समान किसी फाइल में लिपटी पीली पड़ गयीं होंगी.
इस कुचक्र से निकालने के लिए---
सबसे पहले खुद को लताड़ा--बेवकूफ, इसा घर में तुम्हारे अलावा कोइ और रहता है क्या?
भूत प्रेत भी आ गए हों तो वो क्या करेंगे इस कचरे का ?
चोर अगर आ जाते तो ताले तो वैसे ही खुले मिला जाते.
सिलसिलेवार १---
१. स्वमं से वार्तालाप
२. खुद को लताड़ना
३. खुद को भरोसा देना--मैं हूँ तो जहां है.
४. इससे पहले कितनी बार ताले तुदवाए ?
५. Lock Down कभी तो खुलेगा .
सिलसिलेवार २----
१. एक गिलास गुनगुने पानी में जोली तुलसी की १०,१२ बूंदे डाल कर आँखों को मूंदे सिप,सिप कर आनंद लेने लगी.
२. गैस पर उबलती चाय को बड़े से मग में छान कर गहरे सोफे में समा कर अखबार के कुछ पन्ने पलटे तब तक चाय पीने लायक ठंडी हो गयी.
३. टोस्ट के डिब्बे में से एक टोस्ट निकाल कर कुतरने लगी .
४.आनंद में डूबी ,अचानक हाथ बालों तक चला गया और आदतन खुजाने लगी.
५.सोचा ज़रा कंघी से बालों को ठीक कर लूं--
६. तुरंत चाबियों का गुच्छा मेरी नज़रों के सामने पडा था.
७. क्योंकि, एक कंघी बाथरूम के सिंक पर रखलेती हूँ,सुविधा के लिए.
८. मैं सिंक तक पहुँची भी ना थी और मुझे मेरी चाबियाँ मिल गयीं.
यह मस्तिष्क सब कुछ स्टोर किये रहता है बस हमें सही कोडिंग करनी होती है .