जब छोटी थी
तब,मां ने सिखाया था
गलीचे के धागों को पिरोना
हजारों गाठों को हजार गाठों से जोड़ना
एक बार भूल हो गई
गलीचे की हजार गांठों में
एक गांठ कहीं छूट गई
और गलीचे पर उभरे
मोर-पंखों की पांते
बिखर गई थीं.....
तब,सोचा कि
उधेड़ कर फिर से
हजार गांठों से
हजार गाठें जोड़ दूं
पर फिर वो जुनून न था
जो पहले जीवन में भरा था
अब वह रीत गया था
और गांठों के मोर-पंख
कही बिखर गये थे......
तब,मां ने कहा था
अब तुम रिश्तों के गालीचे पर
रिश्तों के मोर-पंख बिनोगी
ध्यान रखना कि एक भी गांठ रिश्ते की
कही छूट न जाय
मोर-पंख टूट कर बिखर जाएगें
तब रिश्तों का गलीचा
दरवाजे पर बिछा
एक पैर-दान की तरह बिछ जायगा
(मन के-मनके)
तब,मां ने सिखाया था
गलीचे के धागों को पिरोना
हजारों गाठों को हजार गाठों से जोड़ना
एक बार भूल हो गई
गलीचे की हजार गांठों में
एक गांठ कहीं छूट गई
और गलीचे पर उभरे
मोर-पंखों की पांते
बिखर गई थीं.....
तब,सोचा कि
उधेड़ कर फिर से
हजार गांठों से
हजार गाठें जोड़ दूं
पर फिर वो जुनून न था
जो पहले जीवन में भरा था
अब वह रीत गया था
और गांठों के मोर-पंख
कही बिखर गये थे......
तब,मां ने कहा था
अब तुम रिश्तों के गालीचे पर
रिश्तों के मोर-पंख बिनोगी
ध्यान रखना कि एक भी गांठ रिश्ते की
कही छूट न जाय
मोर-पंख टूट कर बिखर जाएगें
तब रिश्तों का गलीचा
दरवाजे पर बिछा
एक पैर-दान की तरह बिछ जायगा
(मन के-मनके)