Showing posts with label घूंट-घूंट---- और जीने के लिये---कि बहुत देर तक जीना चाहती हूं.. Show all posts
Showing posts with label घूंट-घूंट---- और जीने के लिये---कि बहुत देर तक जीना चाहती हूं.. Show all posts

Wednesday, 28 January 2015

जोड-घटा तुम्हारी जिंदगी के


                         कुछ कहना चाहती हूं

मगर गटक लेती हूं

खामोशियां---कि

तुम कहीं बे-स्वाद

ना हो जाओ—

तुम्हें रोकना चाहती हूं---मगर

खुद ही खोल देती हूं

कुंडियां---दरवाजों की

कहीं तुम उलझ ना जाओ

और बिना पलटे—

रुखसत हो सको

अपनी राहों पर

हिसाब---इन

सहमी हुई रातों का

नाराज चढते हुए दिनों का

पुरानी होती हुई

उम्र की डायरी के पन्नों पर

जो पीले हो रहे हैं

ढलती हुई धूप से

एक दिन फुर्सत से बैठ कर

कुछ जोडों में से

कुछ घटा कर

चलते-चलते तुम्हें दे सकूं

मगर रोक लेती हूं

अपने-आप को—

सोच कर कि---

गैर-जरूरी मेरे हिसाब से

बेहद जरूरी हैं—

हिसाब---तुम्हारी जिंदगी के

कि कह गयीं---

खामोशियां मेरी

कुछ बात मेरी भी

और अब-तक ना कह कर

सजा-ए-खामोशी पी रही थी

      घूंट-घूंट----

     और जीने के लिये---कि

                 बहुत देर तक जीना चाहती हूं.