दो
तटों की दूरी है---मीलों सी
फैलाऊं
बाहों को---छोर तलक
पर—पैरों में दृढ निश्चयों की कमी
है?
तुम---सपनों
सी, क्यों बन जाती हो?
आंख
खुली---तो,पलकें खाली सी हैं
सागर का---फैला आंचल
मन करता है---मु्ट्ठी में भर लूं!
दूर क्षितिज को---बाहों में भर कर
बाहों में भर कर---तुमको छू लूं
मिटा---लिखी
लकीरों को
फिर
से---लिख दूं,पाती तुमको
पाती
में शब्द नहीं—
मन
होगा---शब्दों सा
शब्दों में भी---अर्थ नहीं
अक्श---होगा भावों का
अक्श में---जब तुम झांकोगी
तुम नहीं---मेरा चेहरा होगा
चेहरे को--- पढना मत
बस---मन को पढ लेना
आंखो से---मत देखना
छू भर लेना---आंखों से
जो अश्क---मेरी आंखों में होंगे
तुम्हारी आंखो से भी---टपकेगें
बस---यही एक इशारा है
हमारी-तुम्हारी---पहचान यही है
क्योंकि---तुम्हारी
पोरों की गर्माहट
मेरे हृदय का---लहू वही है
बस---सत्य यही ,सत्य है
नियति हमारी---स्वीकार-भाव है
क्षितिज---जहां हैं,वहीं रहेंगे
मीलों की दूरी---बस दूरी है
कौन पूर्ण है---अंश कहां है?
एक अहम---तो, एक समर्पण है
और बस---कुछ नहीं है???
संदर्भ:
आज मेरी बेटी
सुमिता का जन्मदिन है.मैंने सुबह एक छोटे से फोन काल से उन्हें शुभकामनाएं तो दे
दीं लेकिन कुछ अधूरा सा लग रहा था.सोचा
कुछ पंक्तियां ही लिख दूं.
लिखना-लिखाना अपनी मर्जी से तो नहीं हो पाता.ऐसा मेरे साथ
होता है.
जब तक मन ना फूटे---तो भावों की धार बह्ती ही नहीं है.
याद है,पहले बच्चे दादा बन जाते थे---और अम्माएं ढोलक
बजवाती रहती थीं,लड्डू के लिफाफे बटते थे---चार-चार लड्डू वाले.
यादें जितनी पुरानी होती जाती हैं उतनी ही उनकी महक और
महकाती है.