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Friday, 31 October 2014

ओशो----एक कहानी यूं कहते हैं,



एक सुबह अभी सूरज भी निकला नहीं था और एक मांझी नदी के किनारे पंहुच गया था.उसका पैर किसी चीज से टकरा गया.झुक कर देखा तो पत्थरों से भरा एक थैला पडा था.सूरज उग आया,झोले में से पत्थर निकाल कर, शांत नदी में एक-एक कर के फेंकने लगा.
धीरे-धीरे सूरज की रोशनी चारों ओर फैलने लगी,तब तक वह सारे पत्थर नदी में फेंक चुका था, सिवाय एक पत्थर के,जो उसके हाथ में रह गया था.
सूरज की रोशनी में जैसे ही उसने उस पत्थर को देखा उसके दिल की धडकन रुक गयी.जिन्हें वह पत्थर समझ कर फेंक रहा था वे हीरे-जवाहारात थे---वह रोने लगा.
इतनी सम्पदा उसे मिली थी उसके जीवन भर के लिये ही नहीं अनंत जन्मों के लिये भी काफी थी.
लेकिन फिर भी मछुआरा भाग्यशाली था क्योंकि अंतिम पत्थर फेंकने से पहले सूरज निकल आया और उसे दिखाई दे गया कि जो उसके हाथ में पत्थर है वह हीरा है.
साधारणतया संसार में सभी इतने भा्ग्यशाली नहीं होते हैं.
जिंदगी बीत जाती है,सूरज नहीं निकलता है,सुबह नहीं होती है और जीवन के सारे हीरे हम पतथर समझ कर फेंक चुके होते हैं.
जीवन एक बडी सम्पदा है,लेकिन आदमी सिवाय उसे फेंकने और गंवाने के कुछ भी नहीं करता है.
हजारों वर्षों से हमें एक ही मंत्र दोहराने के लिये दिया जाता रहा है---जीवन व्यर्थ है,जीवन दुखः है.
नहीं जीवन एक राज है,एक रहस्य,एक –एक पर्त खोलते रहिये स्वर्ग की घाटियां फैली होंगी—स्वर्ग के उतंग-शिखर धवल-प्रकाश से आच्छादित होगेम,निहारिये उन्हें.
साभार---संभोग से समाधि से.