Wednesday, 31 August 2022


                                         नीले ,पीले  ,सफेद , गुलाबी  फूलों वाली  घास और  गुब्बारों  वाले  फूल 

  अब क्यों  नज़र  नहीं  आते  ? 

   खबरें  आने  लगीं  हैं इस  दशक  के अंत  तक  हम  चाँद  पर बसने  लगेंगे  .वहां  की  मिट्टी पर  कुछ  फसलें भी उगाई  जाएँगी  शायद  लाल  पत्ते  वाली ,  टेढ़े ,  मेढ़े गोभी भी उगाये  जाएंगे .

खैर, विज्ञान  की  ललक भरी  दौड़  और  पहुँच बेशक कहाँ  से  कहाँ  तक पहुंच  गई  है तो सोच  कर विश्वास नहीं  होता  है--और देखकर  विश्वास  भी  करना  होता  है.

मैं  ,अभी  अपने लिखे  संसमरणों के  पन्नों को  टटोल  रही  थी  और  आँखों  के  सामने  नीले ,पीले  , सफ़ेद ,गुलाबी  ,वाली  घास  बिछ  गयी  और  स्कूल  की  बाउंड्री  पर  नीले ,नीले गुब्बारे नुमा  फूल  लटकते नजर  आने  लगे .

कब  तक  ऐसी  हरी  घास रंग बिरंगे  फूलों  वाली बिछ  जायेगी ,चाँद  की  माटी पर --एक प्रश्न  हमेशा  ही 

उग   आयेगा  कुकुरमुत्ते के फूल  जैसा .

चलिए--इंसान  अपने  आस्तित्व  की  कोशिकाओं  में  खोजी  जींस  लेकर  पैदा होता  है सो  खोज जारी  रहेगी  उसके  आस्तित्व  के  साथ.

चार ,पांच  दशक  पहले  तक हम  प्रकृति  को  इस तरह  आत्मसात  करते  थे  जैसे कि वह  हमारे जीने  के  लिए  आक्सीजन  हो .

आस ,पास  फैली  सोंधी  माटी  पर  ना  जाने  कितने  तरह  की  घास  यूं  ही  बिछ जाती  थी  और  उस  घास  पर  उगे  छोटे ,छोटे  नीले,,पीले ,सफ़ेद  ,गुलाबी  फूल  हमारे तलुवों  को  छूते रहते  है.

ना  जाने  कितने  फूलों  को  हम  जाने  अनजाने  कुचलते  जाते  थे  फिर  भी ओस  में  भीगे वो फूल  तलुवों  को  अपने  प्यार  से सिक्त  करने  से  नहीं  चूकते  थे .

उन्हें  कुचल  जाने  पर  भी  कोइ मलाल  नहीं होता था--दूसरी  सुबह  उनकी  जगह उतने  ही  फूल  सुबह  की  कच्ची  धुप  में  मुस्कुरा  रहे  होते  थे .

दीवारों  व पेड़ों  की  मोटे , मोटे  तनों  से लिपटी बेलों  पर  लदे ,फदे  नीले ,नीले  गुब्बारेनुमा  फूल जिन्हें  हम  तोड़  कर गुब्बारों  की  तरह  फुला  कर फट,फट कर  के फोड़ते  रहते  थे.

उंगलियाँ हमारी  नीली ,नीली  हो  जाती  थीं .

वो फूल  अपनी स्मृतियों  को  हमारी  उँगलियों  की  पोरों  पर  छाप  जाते  थे.

और वो  स्मृतियाँ  अभी  भी  मेरे  पास  हैं क्योंकि स्मृतियाँ तभी  मरती  हैं जब स्मृतियों वाली  उँगलियों के वजूद  मिट  जाते  हैं.

आज  कितनों  के  पास होंगी  वो स्मृतियाँ  नीले ,नीले पोरों वाली ?

रंग ,महक ,स्व्वाद  से सरोबार  है  आस्तिव ,लेकिन  हम  जीते  हैं  ,पत्थरों  की  तरह  .




6 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 1.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4539 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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    1. धन्यवाद जी आमंत्रण के लिए कोशिश रहेगी चर्चा मंच पर आने के लिए.

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  2. सुंदर संस्मरण, उन नीले फूलों का नाम क्या है या कोई तस्वीर

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  3. अनीता जी प्रेम माया अभिनन्दन ,जी वे फूल मुझे दशकों से नजर नहीं आये और रही बात नामों की सो बचपन में दोस्ती अक्सर बगैर नामों के हो जाता थी , उंगलियाँ जोड़ कर दोस्ती और उंगलियाँ फ़सा कर कट्टी .कोशिश करूंगी उनके चित्र बना पाऊँ. गुब्बारेनुमा फूल दिख जाते हैं पहाड़ों पर.

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  4. बचपन की यादें ताज़ी हो गई। हम तो आज भी रस्ते में जहाँ कहीं ये दिखती है तो फोड़ने बैठते हैं, यह देख बच्चे हँसते हैं, लेकिन हमें तो मजा आता है

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  5. बचपन साथ लिए चलिए,धन्यवाद

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