' जिन्दगी '--एक बात छोटी सी-----
' जिन्दगी ' को जितना खींचो,खिचती चली जाती है.
और, एक कप में चाय कुनकुनी भर लें, फूँक,फूँक कर पी लें
तो, जिन्दगी एक कप में सिमिट आती है--'जिन्दगी'.
' जिन्दगी'
एक आहट है आने की एक आहट जाने की,छोटी सी.
बीच का तामझाम तो बस चाय का खदकना भर है.
चलें---
'जिन्दगी' एक बात छोटी सी--
एक आहट है
आने की
एक आहट है
जाने की, छोटी सी
जिन्दगी.
धुंध के आगोश में
सिमिट जाती हैं,कायनातें
तब, ' तू ' याद आता है,मुझे
कुछ इस तरह,यूं.
शिकायतों की उलझनें
उम्मीदों के मकडजाल,और
हम, कैद हैं
ना-उम्मीदी की कैद में.
क्यूं?
जो--
एक प्याली चाय पी,तेरे साथ
फूँक,फूंक कर--
बस,
इसी गर्माहट में तर
मेरा हो,एक और कल.
और---
एक प्याली और ,
खदकती रहे,चूल्हे पर
' तेरे ' इंतज़ार में.
' जिन्दगी '--
एक बात छोटी सी
प्याली में उडेलना
फूँक, फूँक,घूँट,घूँट
पी लेना,भर है.
' जिन्दगी ' एक बात छोटी सी.
सारी रचनाएँ बहुत सुन्दर हमारी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर एहसास !
ReplyDeleteअभिनव सृजन।
मनभावन
ReplyDeleteआभार एवं धन्यवाद.
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