स्वर्ग को पाने से पहले
पहचान उसकी है ज़रूरी
स्वर्ग के भेष में , छुपें हैं
चारों तरफ़ , कितने बहरूपिए
शीशों के , बन्द कमरों में
क्या कभी , जीती हैं , कोयी महक
महक ही , जब घुट जाय , जहां
कौंन छू सकता है भला , जिन्दगी की आहटें
अपने निज़ी आस्तित्व की खोज़ में
अपनत्व के खन्ढ्हरों पर चलते रहे
बहुत देर हो जायेगी , और
खन्ढ्हरों के भी रेगिस्तान हो जायेंगे
थोडी बहुत , रीती खुशबुओं को भी
वख्त के थपेडे , उडाकर ले जायेंगे
और , कसी मुठ्ठियां भी
खुली रह जायेंगी यूं ही
बन्द मुठ्टी से , वख्त का
ढ्हताह हुआ टीला - रेत का
दबी फुसफुसाहट में
कहता रह जायेगा------
बिखरें हैं स्वर्ग चारों तरफ़ ------
मन के - मनके
पहचान उसकी है ज़रूरी
स्वर्ग के भेष में , छुपें हैं
चारों तरफ़ , कितने बहरूपिए
शीशों के , बन्द कमरों में
क्या कभी , जीती हैं , कोयी महक
महक ही , जब घुट जाय , जहां
कौंन छू सकता है भला , जिन्दगी की आहटें
अपने निज़ी आस्तित्व की खोज़ में
अपनत्व के खन्ढ्हरों पर चलते रहे
बहुत देर हो जायेगी , और
खन्ढ्हरों के भी रेगिस्तान हो जायेंगे
थोडी बहुत , रीती खुशबुओं को भी
वख्त के थपेडे , उडाकर ले जायेंगे
और , कसी मुठ्ठियां भी
खुली रह जायेंगी यूं ही
बन्द मुठ्टी से , वख्त का
ढ्हताह हुआ टीला - रेत का
दबी फुसफुसाहट में
कहता रह जायेगा------
बिखरें हैं स्वर्ग चारों तरफ़ ------
मन के - मनके
अपने निज़ी आस्तित्व की खोज़ में
ReplyDeleteअपनत्व के खन्ढ्हरों पर चलते रहे
बहुत देर हो जायेगी , और
खन्ढ्हरों के भी रेगिस्तान हो जायेंगे
bahut hi sahi , bahut badhiyaa
काश उन्हें ढूढ़ पाते हम सब।
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति है!
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteक्या आपने अपने ब्लॉग से नेविगेशन बार हटाया ?
achha likha h.....
ReplyDeletelekin kya baakai ab swarg ki aakanchhaye rah gyi h?
सुन्दर
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ...।।
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती