Wednesday, 9 March 2011

जीवन का दर्शन

जीवन का दर्शन
कितना ---सादा है
         पेट भरा दो रोटी से
         बिन तकिये की नींद-गहन
                    रच-बस आखों में प्रेम छवि
                    अपनों का हो, स्पर्श- सहज़
स्वर्ग कहां किसने देखा है
पाया क्या, क्या खोया है
         गणित यही गुनते-गुनते
         सदियों सी, घनी अंधेरी रैना है
                     खन्डहरों में गढे खज़ाने
                      राख है------वक्त का रेला है
बस अभी-अभी निकला है, सूरज
बस,अभी-अभी चहकें हैं विहग
          अभी-अभी ही ओस पडी है
           घासों की कोमल पाती पर
                     अभी-अभी ही बिछी चांदनी
                     मेरे घर के आंगन में
मुठठी में, छोटा सा मोती(पल का)
बस मेरा है, मेरा है, बस मेरा है
            अभी-अभी ही, खीर अम्रित सी
            शरद-पूर्णमा की खाई है
                        क्लान्त-भ्रान्त-अशान्त मानस ने
                         शरण बुद्ध की, पाई है
जीवन का दर्शन
कितना सादा है
  

6 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना ..सच ही जेवण दर्शन सरल और सीधा है पर कहाँ रहने देते हैं इसे सीधा सादा ....कविता का फॉण्ट थोड़ा बड़ा कर दीजिए बहुत छोटा है

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  2. बहुत खूबसुरत रचना । वाकई अब सिर्फ टाईप के फान्ट बडे करने की आवश्यकता दिख रही है ।

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  3. कितना सही कहा...कितना सुन्दर कहा...वाह...वाह...वाह...
    अतिसुन्दर प्रेरणादायी रचना...

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना...वाह!!

    अब प्रस्तुतिकरण भी लाईन ब्रेक वगैरह के साथ उम्दा हो गया है.


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    z = ज़ j= ज

    चन्द्र बिन्दु = ~M जैसे आँ = aa~M



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    बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.

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  5. कितनी सुन्दर भावपूर्ण रचना है.

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  6. बहुत ही सुन्दर रचना! कृपया अपनी रचना 'गलीचा' को फिर से थोडा सजा कर प्रस्तुत करे, बहुत प्रभावित किया है उस रचना ने!

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