जीवन का दर्शन
कितना ---सादा है
पेट भरा दो रोटी से
बिन तकिये की नींद-गहन
रच-बस आखों में प्रेम छवि
अपनों का हो, स्पर्श- सहज़
स्वर्ग कहां किसने देखा है
पाया क्या, क्या खोया है
गणित यही गुनते-गुनते
सदियों सी, घनी अंधेरी रैना है
खन्डहरों में गढे खज़ाने
राख है------वक्त का रेला है
बस अभी-अभी निकला है, सूरज
बस,अभी-अभी चहकें हैं विहग
अभी-अभी ही ओस पडी है
घासों की कोमल पाती पर
अभी-अभी ही बिछी चांदनी
मेरे घर के आंगन में
मुठठी में, छोटा सा मोती(पल का)
बस मेरा है, मेरा है, बस मेरा है
अभी-अभी ही, खीर अम्रित सी
शरद-पूर्णमा की खाई है
क्लान्त-भ्रान्त-अशान्त मानस ने
शरण बुद्ध की, पाई है
जीवन का दर्शन
कितना सादा है
कितना ---सादा है
पेट भरा दो रोटी से
बिन तकिये की नींद-गहन
रच-बस आखों में प्रेम छवि
अपनों का हो, स्पर्श- सहज़
स्वर्ग कहां किसने देखा है
पाया क्या, क्या खोया है
गणित यही गुनते-गुनते
सदियों सी, घनी अंधेरी रैना है
खन्डहरों में गढे खज़ाने
राख है------वक्त का रेला है
बस अभी-अभी निकला है, सूरज
बस,अभी-अभी चहकें हैं विहग
अभी-अभी ही ओस पडी है
घासों की कोमल पाती पर
अभी-अभी ही बिछी चांदनी
मेरे घर के आंगन में
मुठठी में, छोटा सा मोती(पल का)
बस मेरा है, मेरा है, बस मेरा है
अभी-अभी ही, खीर अम्रित सी
शरद-पूर्णमा की खाई है
क्लान्त-भ्रान्त-अशान्त मानस ने
शरण बुद्ध की, पाई है
जीवन का दर्शन
कितना सादा है
बहुत खूबसूरत रचना ..सच ही जेवण दर्शन सरल और सीधा है पर कहाँ रहने देते हैं इसे सीधा सादा ....कविता का फॉण्ट थोड़ा बड़ा कर दीजिए बहुत छोटा है
ReplyDeleteबहुत खूबसुरत रचना । वाकई अब सिर्फ टाईप के फान्ट बडे करने की आवश्यकता दिख रही है ।
ReplyDeleteकितना सही कहा...कितना सुन्दर कहा...वाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteअतिसुन्दर प्रेरणादायी रचना...
बहुत ही सुन्दर रचना...वाह!!
ReplyDeleteअब प्रस्तुतिकरण भी लाईन ब्रेक वगैरह के साथ उम्दा हो गया है.
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z = ज़ j= ज
चन्द्र बिन्दु = ~M जैसे आँ = aa~M
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बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
कितनी सुन्दर भावपूर्ण रचना है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना! कृपया अपनी रचना 'गलीचा' को फिर से थोडा सजा कर प्रस्तुत करे, बहुत प्रभावित किया है उस रचना ने!
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