चुल्लू भर, पानी झरने का हो,
या, अन्जुलि में हो, गन्गा- जल
या, कुए की जगत पर, कहीं
गोरी की छलकी गागर हो
या, बारिश की चार बूदों का अम्रित ही
तर कर जाये-- चतके होंठों को
या, धधकते- मरु का विस्तार गहन
मीलों तक, नप जाय- मरुधान तलक
या, किसी अपरिचित के दरवाजे तक जा
अन्जुलि में पा जाऊं, घूंट -चार-दो
अन्तर नही-उस तृप्ति का
कब, कहां और किस रूप में
मिल जाये हमें
जब प्यास लगी हो---
मन के -- मनके
या, अन्जुलि में हो, गन्गा- जल
या, कुए की जगत पर, कहीं
गोरी की छलकी गागर हो
या, बारिश की चार बूदों का अम्रित ही
तर कर जाये-- चतके होंठों को
या, धधकते- मरु का विस्तार गहन
मीलों तक, नप जाय- मरुधान तलक
या, किसी अपरिचित के दरवाजे तक जा
अन्जुलि में पा जाऊं, घूंट -चार-दो
अन्तर नही-उस तृप्ति का
कब, कहां और किस रूप में
मिल जाये हमें
जब प्यास लगी हो---
मन के -- मनके
सच में अमृत तो वही होता है
ReplyDeleteअब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletedubne ke liye bhi kafi hai chullu bhar pani...pyase ko mil jaye to baat hi kya hai...ati sunder rachna...
ReplyDeleteखूबसुरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एवं गहन प्रस्तुति!!
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-