Friday, 25 March 2011

ओशो की विचार प्रपंचा

मनुश्य़ के जीवन में एक पड़ाव तब आता है जब अनायास, वह चोंक कर ठिठक जाता है और कई प्रश्नोसे घिर जाता है- मैं आख़िर कहां जा रहा हूं,किस लिये यह आयोजन, किसके लिये.
        जब ऐसे ही क्यों, कैसे, क्योम और कहां जैसे प्रश्नों से घिर जाता है तभी अविश्कार का पल आता है अओर इस प्रिक्रिया में उसकी खोज शुरू हो जाती है.
     कुछ भाग्यशाली खोज कर ही लेते हैं और बुधत्व को प्राप्त हो जाते हैं.
   अभी, कुछ समय पहले सौभाग्य प्राप्त हुआ ओशो की विचार्धारा के अथाह सागर के तट पर खडे होने का.
       अभी तो तट पर खडी हूं लगता है सामने अथाह, असीमत, अनखोजा सागर फैला हुआ है जहां छिति़ज़ भी नज़र नहीं आता है.
        जितना पढा उतनी ही दिमाग धुलता जा रहा है.
     ओह्सो की विचार- प्रपन्चा जीवन के गम्भीर्तम विशयों को इस बेफ़िक्री से उधेडती है कि जैसे उसे दुबारा गोंठ्ने की ज़रूरत न हो.
      घरे गोते खाते- खाते यकायक हम अपने आप कोसतह पर पाने लगते हैं.
    ओशो का नसरुद्दीन गम्भीरता केहर लबादे को इस तरह उतार फेंकता है जैसे कि वह चीथडा हो गया हो और उसको फेंकना जीवन का सत्य है.
                                                                         मन के - मनके
                                                                                                           उमा

3 comments:

  1. जीवन में कई पड़ावों पर हमें यह सोचना होता है।

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  2. ओशो ने मुझे भी बहुत प्रभावित किया है. शायद ही कोई रात ऐसी जाती हो, जब उन्हें सुनते हुए न सोया हूँ.

    एक दर्शन जो अपने साथ बहा ले जाता है सहज ही और हम साक्षीभाव से स्वतः आत्मसात करते जाते हैं उस जीवन दर्शन को जो हमें निर्वाण की ओर ले जाने की एक छोटी सी पहल है..अभ्यास तो असीमित करना होगा-ईश प्राप्ति के लिए. जीवन थोड़ा है.

    मुल्ला नसिरुद्दीन मात्र एक करेकर न होकर एक संपूर्ण दर्शन हैं स्वयं मे बमार्फत ओशो!!!

    मेरा सौभाग्य कि मुझे ओशो का एक लम्बा सानिध्य प्राप्त रहा एक लम्बे अरसे तक.

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  3. करेकर= करेक्टर...कृपया टिप्पणी में सुधार कर पढ़ें.

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