विष्यानंद यानी कि वासना - ब्रम्हानंद यानी कि परमात्मा सन्सार का रचनाकार.
ओशो कहते हैं- वासना स्वाभाविक है. प्रक्रिति की भेंट है. वासना अपने आप में स्वस्थ है. वासना के बिना जी न सकोगे ऐक पल. ( ओशो- का सोवे दिन रेन पन्ना-११२ )
शास्त्रों के अनुसार- परमात्मा अकेला था. उसके मन में वासना जागी, दो होऊं प्रक्रिति का जन्म हुआ , सन्सार में स्त्री- पुरुष ने जन्म लिया.
यदि ,परमात्मा में विषय यानी वासना न जन्मती तो कहां का संसार, कहां की दुनिया.
विषय- वासना- परमात्मा के दो आयाम हैं. चाहें हम इन्हें ऐक देखें या दो यह हमारी मनोदशा, हमारी समाजिक- धार्मिक रुग्नता के कारण है.
ओशो ने कहा---- वासना अस्वस्थ नहीं होती, उसे हम दूशित करते हैं.
गन्गा कभी मैली नही थी , सदियों से अवतरित हो रही है . उसे दूषित हमने किया है .
अतः--- ओशो के विष्यानंद और ब्रम्हानंद ऐक हैं दो नहीं . हमें समझ्ने की कोशिश करनी चाहिये, तभी समाज की गन्दगी बुहर पायेगी .
मन के--- मनके
उमा
ओशो कहते हैं- वासना स्वाभाविक है. प्रक्रिति की भेंट है. वासना अपने आप में स्वस्थ है. वासना के बिना जी न सकोगे ऐक पल. ( ओशो- का सोवे दिन रेन पन्ना-११२ )
शास्त्रों के अनुसार- परमात्मा अकेला था. उसके मन में वासना जागी, दो होऊं प्रक्रिति का जन्म हुआ , सन्सार में स्त्री- पुरुष ने जन्म लिया.
यदि ,परमात्मा में विषय यानी वासना न जन्मती तो कहां का संसार, कहां की दुनिया.
विषय- वासना- परमात्मा के दो आयाम हैं. चाहें हम इन्हें ऐक देखें या दो यह हमारी मनोदशा, हमारी समाजिक- धार्मिक रुग्नता के कारण है.
ओशो ने कहा---- वासना अस्वस्थ नहीं होती, उसे हम दूशित करते हैं.
गन्गा कभी मैली नही थी , सदियों से अवतरित हो रही है . उसे दूषित हमने किया है .
अतः--- ओशो के विष्यानंद और ब्रम्हानंद ऐक हैं दो नहीं . हमें समझ्ने की कोशिश करनी चाहिये, तभी समाज की गन्दगी बुहर पायेगी .
मन के--- मनके
उमा
ओशो के विचारों का अलख जगाने के लिए आभार। प्रेरक संदेश।
ReplyDeleteदोनो एक ही हैं।
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