Friday 25 March 2011

ओशो के --- विष्यानन्द और ब्रम्हानंद

विष्यानंद यानी कि वासना - ब्रम्हानंद यानी कि परमात्मा सन्सार का रचनाकार.
     ओशो कहते हैं- वासना स्वाभाविक है. प्रक्रिति की भेंट है. वासना अपने आप में स्वस्थ है. वासना के बिना जी न सकोगे ऐक पल. ( ओशो- का सोवे दिन रेन पन्ना-११२ )
    शास्त्रों के अनुसार- परमात्मा अकेला था. उसके मन में वासना जागी, दो होऊं प्रक्रिति का जन्म हुआ , सन्सार में स्त्री- पुरुष ने जन्म लिया.
   यदि ,परमात्मा में विषय यानी वासना न जन्मती तो कहां का संसार, कहां की दुनिया.
     विषय- वासना- परमात्मा के दो आयाम हैं. चाहें हम इन्हें ऐक देखें या दो यह हमारी मनोदशा, हमारी समाजिक- धार्मिक रुग्नता के कारण है.
     ओशो ने कहा---- वासना अस्वस्थ नहीं होती, उसे हम दूशित करते हैं.
   गन्गा कभी मैली नही थी , सदियों से अवतरित हो रही है . उसे दूषित हमने किया है .
      अतः--- ओशो के विष्यानंद और ब्रम्हानंद ऐक हैं दो नहीं . हमें समझ्ने की कोशिश करनी चाहिये, तभी समाज की गन्दगी बुहर पायेगी .
                                                                 मन के--- मनके
                                                                                             उमा 

2 comments:

  1. ओशो के विचारों का अलख जगाने के लिए आभार। प्रेरक संदेश।

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