Friday, 18 March 2011

एक दर्द- सुनामी का

तुम कौन हो
            नही -- मालूम

पर तुम मां हो,बेटी हो
बहन हो या हो हमसफर

उनकी,जो छोड़, तुम्हे चले गये
दे कर दर्द का सागर-आंखों में

अब छलका-कि-छलका,
बन सुनामी -- सा

                         "मन के - मनके"
                               उमा

4 comments:

  1. हमारी भी संवेदनायें आपके माध्यम से।

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  2. भाव पूर्ण रचना,

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  3. बहुत ही संवेदनशील लिखा है ...
    जाने वाले तो हमेशा दर्द दे कर जाते हैं ... साथ में सहने का संबल भी ....

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  4. रंगों की चलाई है हमने पिचकारी
    रहे ने कोई झोली खाली
    हमने हर झोली रंगने की
    आज है कसम खाली

    होली की रंग भरी शुभकामनाएँ

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