ऐक प्रश्न- परमात्मा को कैसे याद करें?
ओशो के अनुसार-- यह प्रश्न अपने-आप में बडा ही भारी-भरकम है.
इन्सान, अभी स्वम को ही नही जान पाया है.सदियां बीत गईं,खोजें जारी हैं. अब,भला जो दिखाई न दे,उसे कैसे जानें.
मेंज पर्रखी पुस्तक को छूना सम्भव है,उसके पन्नों को पलटना भी सम्भव है,चाहे भाषा की जानकारी हो या न हो.कभी-कभी कुछ महानुभाव भाषा सीख कर उसे पढ भी लेते हैं
इस पढाई को भी ओशो ने सहज कर दिया,स्वाभाविक बना दिया,सर्व-प्राप्त कर दिया,बशर्ते ओशो के कहे को मान पायें और उस मार्ग पर चल पायें.
ओशो तो अपना दायित्व निभा रहे हैं,जाने के बाद भी.अब हम कब अपना फ़र्ज़ पूरा करेंगे.
उक्त ऐक प्रश्न ने और प्रश्नों को जन्म दे दिया.
इस दिशा में ओशो ने बडी सहजता से तीन मार्ग सुझाये हैं, साथ ही कुछ पूर्व स्वीकृत सडे,गले मार्गों पर जाने की मनाही भी की है.
ओशो के अनुसार,
पहला मार्ग--जीवन को मधुशाला समझो.प्रितिदिन आओ, छक कर पियो. भूल जाओ खुद को भी,ईश्वर को भी.
फूलों की जो गन्ध चुरा ले और भंवरों सा जो झूम रहा हो
गम से जिसका कोईन नाता हो,खुशियां देने जो घूम रहा हो
देखी जो गैरों की खुशियां,अपनी किस्मत चूम रहा हो
उसी प्याले में पैमाना भर-भरकर के,ढाला--------जाये
(समीर लाल-ब्लागर)
दूसरा रास्ता--ओशो के अनुसार
सीधे शब्दों में जीवन मिला है ,इसे दुख-सुख के साथ स्वीकार करें.
जीवन रूपी मधुशाला में मधुपान करते-करते हम सत्संग में लीन हो जांये.
मैं भी पी रहा हूं, तू भी पी
मैं भी जी रहा हूं,तू भी जी
मन के-मनके
ओशो के अनुसार-- यह प्रश्न अपने-आप में बडा ही भारी-भरकम है.
इन्सान, अभी स्वम को ही नही जान पाया है.सदियां बीत गईं,खोजें जारी हैं. अब,भला जो दिखाई न दे,उसे कैसे जानें.
मेंज पर्रखी पुस्तक को छूना सम्भव है,उसके पन्नों को पलटना भी सम्भव है,चाहे भाषा की जानकारी हो या न हो.कभी-कभी कुछ महानुभाव भाषा सीख कर उसे पढ भी लेते हैं
इस पढाई को भी ओशो ने सहज कर दिया,स्वाभाविक बना दिया,सर्व-प्राप्त कर दिया,बशर्ते ओशो के कहे को मान पायें और उस मार्ग पर चल पायें.
ओशो तो अपना दायित्व निभा रहे हैं,जाने के बाद भी.अब हम कब अपना फ़र्ज़ पूरा करेंगे.
उक्त ऐक प्रश्न ने और प्रश्नों को जन्म दे दिया.
इस दिशा में ओशो ने बडी सहजता से तीन मार्ग सुझाये हैं, साथ ही कुछ पूर्व स्वीकृत सडे,गले मार्गों पर जाने की मनाही भी की है.
ओशो के अनुसार,
पहला मार्ग--जीवन को मधुशाला समझो.प्रितिदिन आओ, छक कर पियो. भूल जाओ खुद को भी,ईश्वर को भी.
फूलों की जो गन्ध चुरा ले और भंवरों सा जो झूम रहा हो
गम से जिसका कोईन नाता हो,खुशियां देने जो घूम रहा हो
देखी जो गैरों की खुशियां,अपनी किस्मत चूम रहा हो
उसी प्याले में पैमाना भर-भरकर के,ढाला--------जाये
(समीर लाल-ब्लागर)
दूसरा रास्ता--ओशो के अनुसार
सीधे शब्दों में जीवन मिला है ,इसे दुख-सुख के साथ स्वीकार करें.
जीवन रूपी मधुशाला में मधुपान करते-करते हम सत्संग में लीन हो जांये.
मैं भी पी रहा हूं, तू भी पी
मैं भी जी रहा हूं,तू भी जी
मन के-मनके
किशोर का भी एक गाना है इसी तरह का।
ReplyDeletewaah...
ReplyDeleteसत्य कहा...
ReplyDeleteविचारणीय...अनुकरणीय...
सत्य कहा
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