Monday, 16 May 2011

ओशो कहते हैं--समर्पण से बडी घोषणा अपनी मालिकियत की और दूसरी नहीं.

ओशो कहते हैम---
मैं,तभी समर्पित कर सकता हूं जब मैं अपना मालिक स्वम हूं.
इस सन्दर्भ में,ओशो ने डायनीज(जो एक गुलाम था) की कहानी कही है-----
डायनीज,एक गुलाम था,मस्त्मौला,नंगा,फ़कीर. कुछ लोगों ने उसे देखा(वे आठ थे) और उसे पकड कर गुलामों के बाज़ार में बेचने का इरादा बनाया.
प्रश्न यह था,उसे पकडा कैसे जाय,क्योंकि वह शारीरिक रूप से मज़बूत भी था.
इस सन्दर्भ में,ओशो ने एक और सत्य को उजागर किया है,वे कहते हैं----’ध्यान रखें,जो दूसरों को भयभीत करता है,वह भी भीतर से भयभीत होता ही है.,
जब दायोनीज ने देखा,वे आठों लोग उसे पकडने के लिये कितने उपक्रम कर रहें हैं,तब दायोनीज ने उनसे कहा,’इतना उछल-कूद करने की क्या जरूरत है, नासमझो,कह देते तो हम खुदह ी जंजीरों में बंध जाते,.
कुछ देर के बाद दायोनीज ने जंजीरें भी उतार कर फ़ेंक दी,और बडी शान से उन आठों लोगों के आगे चलने लगा.
रास्ते भर वह लोगों से कहता जा रहा था,’क्या देख रहे हो,ये मेरे गुलाम हैं.,
वह बाज़ार भी आ गया जहां गुलाम बेचे जाते थे.अब वे आठों आदमी फ़िर घबडा गये,यह सोच कर कि उसे वहां कैसे लेकर जाया जाय जहां बोली लगाई जाती है.
दायोनीज ने फ़ि उस आदमी को ललकारा,और चिल्लाकर कहा,’आज़ एक मालिक इस बाज़ार में बिकने आया है,जिसको खरीदना है,खरीदले.,
यही ’गीता, का ’कर्म-वाद,है,जो ’निमित-मात्र, पर टिका है,ऐसा निमित होना जो स्वम-स्वीकार्य, हो, जो थोपा गया न हो.
यही ओशो का--जीवन चुनाव नही है,स्वीकार्य-भाव है.
                                                                                       ओशो--सहस्त्र नमनः
                                                                                                                              मन के-मनके

4 comments:

  1. ओशो को पढ़ा नही है .. पर नेट के माध्यम से उसका कहा अक्सर पढ़ने को मिल जाता है .... चमत्कारी है उनका लेखन ...

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  2. .... ओशो को पढ़ा नही है

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  3. खुदी को कर बुलंद इतना...

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