रास्ते चल रहे थे----
रास्ते चल रहे थे,
हम भी हो लिये,साथ उनके
कुछ,हसरतें थी,साथ मेरे
कुछ,पलकों पर साधॆ हुए थे हम
कुछ,हसरतें मुट्ठी में भी थीं बंद
तॊ,कुछ फ़िसलकर,अपने ही ,
पैरों तले,धूल हो गईं
सपनों के दरमियां,तुम भी साथ चल पडॆ
कोई बात नहीं,गर दो कदम ही थे,
तुम---------साथ मेरे,
तुम्हारी हथेलियों सॆ उठती हुई सांसे,
मेरी सांसॊं में,यूं घुल रही है,
जैसे कहीं से उठ रही है, महक
चंदन के दरख्त
मुझे,मालूम है
इस साथ की हकीकत,
फिर भी,चन्द रातों की खुशबुएं
महकाती रहेंगी,मेरे राहे गुज़र के
क्या-क्या,और किस-किस का,
करें गम और किससे करें शिकायत
हम तो, फूलों के साथ
चंद कांटॊं की भी रखते हैं,हसरतें.
मन के--मनके
सपनों के दरमियां,तुम भी साथ चल पडॆ
ReplyDeleteकोई बात नहीं,गर दो कदम ही थे,saath to tha
बहुत ही खूबसूरत भावमय एहसास.....आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता, रास्ते चले जाते है।
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति...