याद अभी ताजी है,
छोटी सी,हठ-हठीली की,
जाने क्या वो सपना था
जिसका कोई ओर-छोर न कोना था,
आंसू की बाढ जो छूटी
बांध कौन क्यों पाया था,
अपने ही आंसू का मतलब
अपने को ही समझ न आया था,
कभी-कभी,एक दिन होता था
एक हठीली हठ के नाम,
जिस दिन सारी दुनिया
छोटी सी मुट्ठी में आ जाती थी,
हर घर में,एक बाबूजी
एक माताजी होती थीं,
जिनकी ममता की छाया के नीचे
भविष्य-पीढियाम,वट सरीखी, बढती थीं,
अक्सर ही देर बहुत हो जाती है
उनकी सांसो की गर्माहट छूने में,
अपनी अभिलाषाओं के मेले मेम
दूर छिटक-भटक कहीं वे जाती हैं,
आज,अगर खिन्नी की छांव तले
इमली के खट्टे-बूटे गाल ---भरे,
तोंतो के कुतरे अमरूद-बेर
मुट्ठी,झोली मेंबभर जाये,पुनः,
तो गुरुओं के ठोर निरे
जीवन के रहस्य---घिरे,
बहकावों के शब्द-जाल
गली-गली,दुकान धोंको की,
सब,राह उसी पर आ जांए
जिन राहों पर,खिन्नी-इमली के पेड खडे,
पाने का सीखा गणित बहुत
पर,खोया क्याय ह ना जाना है,
आएं,पाठ्शाला एक ऐसी गढें
जहां,सब कुछ पढ,सब बिसरा जांए.
मन के-मनके
छोटी सी,हठ-हठीली की,
जाने क्या वो सपना था
जिसका कोई ओर-छोर न कोना था,
आंसू की बाढ जो छूटी
बांध कौन क्यों पाया था,
अपने ही आंसू का मतलब
अपने को ही समझ न आया था,
कभी-कभी,एक दिन होता था
एक हठीली हठ के नाम,
जिस दिन सारी दुनिया
छोटी सी मुट्ठी में आ जाती थी,
हर घर में,एक बाबूजी
एक माताजी होती थीं,
जिनकी ममता की छाया के नीचे
भविष्य-पीढियाम,वट सरीखी, बढती थीं,
अक्सर ही देर बहुत हो जाती है
उनकी सांसो की गर्माहट छूने में,
अपनी अभिलाषाओं के मेले मेम
दूर छिटक-भटक कहीं वे जाती हैं,
आज,अगर खिन्नी की छांव तले
इमली के खट्टे-बूटे गाल ---भरे,
तोंतो के कुतरे अमरूद-बेर
मुट्ठी,झोली मेंबभर जाये,पुनः,
तो गुरुओं के ठोर निरे
जीवन के रहस्य---घिरे,
बहकावों के शब्द-जाल
गली-गली,दुकान धोंको की,
सब,राह उसी पर आ जांए
जिन राहों पर,खिन्नी-इमली के पेड खडे,
पाने का सीखा गणित बहुत
पर,खोया क्याय ह ना जाना है,
आएं,पाठ्शाला एक ऐसी गढें
जहां,सब कुछ पढ,सब बिसरा जांए.
मन के-मनके
आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
ReplyDeleteकाश ऐसा हो पाता सब बिसराया जाता।
ReplyDeleteस्मृति का प्यारा संसार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण...सुन्दर रचना...
ReplyDeleteऐसी पाठशाला अब बच्चों को नसीब नहीं...या कोई बच्चा अपना अलग स्कूल खोल ले...
ReplyDeleteअक्सर ही देर बहुत हो जाती है
ReplyDeleteउनकी सांसो की गर्माहट छूने में,
-सच कहा आपने...अक्सर देर हो जाती है...फिर सिफ़र ही हाथ आता है.