कल – आज – कल
की धराओं में
हर पल की धारा
त्रिवेणी है
निज हर पल
इसमे डुबकी ही
जीवन के महाकुम्भ मे
जीवन – तरनी है
शंकाओं ’औ ’ बोध अपराधो के
मलिन न कर दे , इसके तट को
मधु – घूंट समझ , इस जीवन को
तृप्त – अमर होकर , मिट ले हम
कहां से आये, और
कहां जाना है {हमको}
नही टटोलना इन प्रश्नो को
नित्य-निरुत्तर ही रहने दे (इन प्रश्नो को)
उनके ही अर्थो मे
हम तो, बिसरती गाथाओ मे
ओझल हो जायेगे, धीरे- धीरे
केवल स्मृति – चिन्हो मे अंकित होकर
ज्यों , नित्य निरन्तर जाने वाले पल
मन के - मनके
हम तो, बिसरती गाथाओ मे
ReplyDeleteओझल हो जायेगे, धीरे- धीरे
केवल स्मृति – चिन्हो मे अंकित होकर
ज्यों , नित्य निरन्तर जाने वाले पल ...........बहुत खूब .....खूबसूरत लेखनी
चिर निरंतर ....मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर ना मिला है ओर ना मिलेगा ....
anu
पल ये जो जाने वाला है।
ReplyDeleteबहुत भावप्रणव रचना लिखी है आपने!
ReplyDeleteकुछ प्रश्नों का निरुत्तर रह जाना ही श्रेयस्कर है...
ReplyDeletekhubsurat rachna...
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