Tuesday, 2 August 2011

कल –आज- कल

कल – आज – कल
की धराओं में
हर पल की धारा
त्रिवेणी है
          निज हर पल
          इसमे डुबकी ही
          जीवन के महाकुम्भ मे
          जीवन – तरनी है
शंकाओं ’औ ’ बोध अपराधो के
मलिन न कर दे , इसके तट को
मधु – घूंट समझ , इस जीवन को
तृप्त – अमर होकर , मिट ले हम
            कहां से आये, और
            कहां जाना है {हमको}
            नही टटोलना इन प्रश्नो को
            नित्य-निरुत्तर ही रहने दे (इन प्रश्नो को)
            उनके ही अर्थो मे
हम तो, बिसरती गाथाओ मे
ओझल हो जायेगे, धीरे- धीरे
केवल स्मृति – चिन्हो मे अंकित होकर
ज्यों , नित्य निरन्तर जाने वाले पल

                        मन के - मनके

5 comments:

  1. हम तो, बिसरती गाथाओ मे
    ओझल हो जायेगे, धीरे- धीरे
    केवल स्मृति – चिन्हो मे अंकित होकर
    ज्यों , नित्य निरन्तर जाने वाले पल ...........बहुत खूब .....खूबसूरत लेखनी
    चिर निरंतर ....मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर ना मिला है ओर ना मिलेगा ....

    anu

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  2. पल ये जो जाने वाला है।

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  3. बहुत भावप्रणव रचना लिखी है आपने!

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  4. कुछ प्रश्नों का निरुत्तर रह जाना ही श्रेयस्कर है...

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