मैं अभी और पी भी लूं
मैं,अभी और जी भी लूं
कल के मेह्खानों में
लुढक्रे--------ज़ामों में
फ़कत,दो बूंद ही बाकी
अपने पोरों पर---थामें उनको
जब भी लाती हूं----होठों तक
मगर,कितने सवालों के ज़वाब
बाकी हैं अभी
कहीं,अहंकारों की दग्ध शिलाओं पर
खिलने के मौसम में-----भी
कलियां,बेबस सी-----हो
देतीं हैं,खामोश आहुतियां क्यों
कितने जीवन,झरनों से बह्कर
बेआवाज़हो ,हो जाते हैं,खारे समुंदर से क्यों
कितनी भूखें,पेटों से चिपकी
बडे-बडे पेटों में,इतनी बडी हो लाती क्यों
कि,अपने ही वज़ूद की,बेबसी
आंखों में,नंगी सी हो जाती क्यों
संभावनाओं के कत्ल,पुन्य से
हर घर कोनों में,पूजा से,हो जाते,क्यों
कितनी बेटियां,बुदबुदाते होठों से
सपनों को पी जाती,आंसुओं में क्यो
हर मंदिर की ड्योढी पर
खंडहरी चबूतरों पर बैठी
रीतती ज़िंदगियां,कितनी
दिये की बत्ती सी,बीतती जाती क्यों
खबरों में,झूठ बोलते क्यों
हर झूठ,पगा सा,स्वार्थों में,क्यों
मैं,अभी,और पी भी लूं
मैं,अभी,और जी भी लूं
एक खबर का इंतज़ार,फिर भी है
जो,उम्मीदों की किरणों सी हो
आंख खुले तो,दमकता आंगन हो
आंगन में,जीवन की सोंधीं खुशबू हो
दरवाजे पर दस्तक हो,आंगुतक की दस्तक हो
हाथॊ मे चाय,प्यालियों में,कुनकुनी हो
कंधों पर हाथ हो भाई का
मां के आंचल से पुछी बूंदे पसीने की हो
हर हक का हकदारी हो
हर फ़र्ज़ की पाती,पूरी हो
पेटों में,भूख ना धधकती हो
आंखों में,कल के सपने हो
सडकों पर,ना फैला हो,आवारापन
आवाजों में,महक कच्चे गीतों की हो
हर आंख में,सब्र का दरिया हो
हर सांस जो छूती हो,अपनी सी हो
तो,
मैं,अभी और,पी भी लूं
मैं,अभी और,जी भी लूं
मन के-मनके
मैं,अभी और जी भी लूं
कल के मेह्खानों में
लुढक्रे--------ज़ामों में
फ़कत,दो बूंद ही बाकी
अपने पोरों पर---थामें उनको
जब भी लाती हूं----होठों तक
मगर,कितने सवालों के ज़वाब
बाकी हैं अभी
कहीं,अहंकारों की दग्ध शिलाओं पर
खिलने के मौसम में-----भी
कलियां,बेबस सी-----हो
देतीं हैं,खामोश आहुतियां क्यों
कितने जीवन,झरनों से बह्कर
बेआवाज़हो ,हो जाते हैं,खारे समुंदर से क्यों
कितनी भूखें,पेटों से चिपकी
बडे-बडे पेटों में,इतनी बडी हो लाती क्यों
कि,अपने ही वज़ूद की,बेबसी
आंखों में,नंगी सी हो जाती क्यों
संभावनाओं के कत्ल,पुन्य से
हर घर कोनों में,पूजा से,हो जाते,क्यों
कितनी बेटियां,बुदबुदाते होठों से
सपनों को पी जाती,आंसुओं में क्यो
हर मंदिर की ड्योढी पर
खंडहरी चबूतरों पर बैठी
रीतती ज़िंदगियां,कितनी
दिये की बत्ती सी,बीतती जाती क्यों
खबरों में,झूठ बोलते क्यों
हर झूठ,पगा सा,स्वार्थों में,क्यों
मैं,अभी,और पी भी लूं
मैं,अभी,और जी भी लूं
एक खबर का इंतज़ार,फिर भी है
जो,उम्मीदों की किरणों सी हो
आंख खुले तो,दमकता आंगन हो
आंगन में,जीवन की सोंधीं खुशबू हो
दरवाजे पर दस्तक हो,आंगुतक की दस्तक हो
हाथॊ मे चाय,प्यालियों में,कुनकुनी हो
कंधों पर हाथ हो भाई का
मां के आंचल से पुछी बूंदे पसीने की हो
हर हक का हकदारी हो
हर फ़र्ज़ की पाती,पूरी हो
पेटों में,भूख ना धधकती हो
आंखों में,कल के सपने हो
सडकों पर,ना फैला हो,आवारापन
आवाजों में,महक कच्चे गीतों की हो
हर आंख में,सब्र का दरिया हो
हर सांस जो छूती हो,अपनी सी हो
तो,
मैं,अभी और,पी भी लूं
मैं,अभी और,जी भी लूं
मन के-मनके
भावुक पंक्तियाँ।
ReplyDeleteकितनी बेटियां,बुदबुदाते होठों से
ReplyDeleteसपनों को पी जाती,आंसुओं में क्यो
बहुत खूब ...एक एक पंक्ति ...भावना से परिपूर्ण
बहुत सुन्दर रचना,बहुत ही उम्दा प्रस्तुती
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें.
उम्दा भावाव्यक्ति!!
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