जीवन की उपजाउ धरती पर पडा जीवन रूपी नन्हा सा बीज , जब धरती मां की कोख मे पहली बार कुलबुलाता है तो वह अहसास है जिसे रुपी पृथ्वी पर हर वह जीव जीवन देने की क्षमता रखता है जिसे वह ईश्वर प्रद्त्त वरदान के रूप मे पाता है एसा अहसास जो शब्दों से परे है , जिसने भी पाया निहाल हो गया .
कभी कभी , धरती मे दबा बीज जब कुछ घन्टे , कुछ दिन बाद अपने अन्दर छिपी जीवन के सम्भावनाओ के पंखो को खोलने लगत है तो अचानक जाने कहां से चमतकारित करने वाली ,नन्ही- नन्ही , हरी- हरी कोमल सी दो पक्तियां बीज मे से फूट पडती है मन अजीव खुशीयॊ मे भर जाता है अरे! ये कह से आ गयी , अनायास ही मुंह से निकल पडता है .
और ! सामने ईश्वर की छाया मे दिखने लगती है . वह ईश्वर , वह भगबान , वह आधार जिसे सुनने , जानने , देखने व पाने के लिये हम भटकते रहते है अन्धे की तरह .
वह अहसास् हमे थोडी देर ठहर के महसूस करना चाहिये भागना तो कब्र तक है लेकिन ईश्वर के दर्शन कर लें ईश्वर को छु ले और उसे पा तो ले .
एक अहसास बीज को मिटटी मे दबाने का , उसे सीचने का उसे सहेजने का और जीवन के स्पंदन को छूने का.
जरुरी नही जीवन को छूने के लिये बीज को ही बोया जाये , जहां जीवन की सम्भावनाएं हो तो उन सम्भावनाओं को हकीकती अहसास देना ही इस अहसास को पा लेने के समान है.
इसके विपरीत ,दूसरा अहसास जीवन की सम्भावनाओ को असंम्भव बनाना है यदि हमारे पास साधन है , वक्त है , योग्यता है-- इन संम्भावनाओ को असम्भव नही बनाना चाहिये.
एक बीज,जिसे हम नम मिट्टी में दबा देते हैं,उसमें फलदार पेड होने की क्षमता छुपी है,जो हमारे एक अह्सास से दुबारा हजारों बीजों के माध्यम से जीवन की हजारों संभावनाओं को, पृथ्वी पर
हमारे लिये बिखेर देगा.
अह्सास का दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है—जमीन में अंकुरित होते हुए बीज को निर्दयता से,
बाहर निकाल दें और इस तरह एक बीज की हत्या के अह्सास ने हजारों बीजों के जीवन के अह्सासों
को कुचल दिया.
ईश्वर ने हमें ’अह्सास’ दिये हैं,केवल शुद्ध रूप में,पवित्र रूप में—यह तो मनुष्य की मानसिकता है,उस अह्सास को वह किस रूप में स्वीकार करे या विकृत करे.
मां की कोख में,बीज-रूप में,जीवन-स्पंदन,फिर वही ईश्वर की परिकल्पना है,जिसे हम उस मृग की तरह ढूंढते हैं,जंगल-जंगल भटकते हैं,जो अपने सिर में छुपी कस्तूरी की महक के पीछे भटकता
रहता है.
ईश्वर ने हमें ’अह्सास’ दिये हैं,केवल शुद्ध रूप में,पवित्र रूप में—यह तो मनुष्य की मानसिकता है,उस अह्सास को वह किस रूप में स्वीकार करे या विकृत करे........
ReplyDeleteबहुत बहुत सार्थक लेख
एहसास ही जीवन का आधार है ....मानसकिता दर्शाता है ...जिस जीवन में
--
स्वयं में ही सब सुख छिपे हैं, वही ढूढ़ते रहना है हम सबको।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख।
ReplyDeleteजीवन अहसास है , बिना इसके जीवन नीरस है ...आपकी हर पंक्ति विचारणीय है ...आपका आभार
ReplyDeleteअह्सास का दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है—जमीन में अंकुरित होते हुए बीज को निर्दयता से,बाहर निकाल दें और इस तरह एक बीज की हत्या के अह्सास ने हजारों बीजों के जीवन के अह्सासों को कुचल दिया.
ReplyDeleteसही ..विचारणीय है ...आपका आभार
बहुत सार्थक लेख
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