तुमने,वह अह्सास तो दिया होता
जिसकी छाया की छांव तले
आज की तपिश को
ठंडा कर पाती------
और,अह्सासों की बारिशों की
नन्हीं-नन्हीं,बूंदों से----------
क्लांत-भ्रांत पथिक के----
पथ को ठंडा कर पाती
पर, तुम गये तो------
यूं गये कि,मेरी सांसों को
मेरी आसों को—बेआस कर गये
बे-सांस कर गये-------
काश! जब हम दो
हमराह होकर चल रहे थे
तो, अपने अह्सासों की
कोई महक तो बिखेर देते
अपने स्पर्शों की गर्माहट को
मेरे हाथों पर दे जाते-----
तो, कुछ तो होने का अह्सास लिये
Urmila ji,
ReplyDeletebhaavpurn rachna keliye badhai sweekaaren.
बड़ी ही गहरी कविता।
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