Wednesday 24 August 2011

अह्सास

चार अक्ष्ररों के समूह का एक शब्द—जो मनुष्य-जीवन के भावात्मक संसार का आधार है.
अहसास-शब्द ही वह शब्द है, जो मनुष्य के भावात्मक संसार को समेटने की क्षमता रखता है.
    मेरे विचार से, यह शब्द हिन्दी भाषा की शब्दावली का नही है,इसे हमने उर्दू भाषा की शब्दावली 
से तोहफ़े के रूप में लिया है.वैसे तो हमारी रोज़मर्रा की बोलचाली भाषा में न जाने कितने शब्द उर्दू,
फारसी के शामिल हो गये हैं,जिन्हें अब हिदी भाषा से अलग करके समझना भी संभव नहीं है.
   एक और तथ्य है,जो मैं अनुभव कर पाती हूं, कि ज़िंदगी के कुछ रूप,कुछ खास शब्दों के माध्यम से ही समझ आते हैं, तब उन पर किसी खास भाषा का अधिकार नहीं रह जाता है.
सारी सीमाएं विलीन हो जाती हैं,बस,अह्सास सिर्फ़ अह्सास ही होता है,जैसे मुंह में घुली मिश्री की मिठास की तरह.
  अह्सास का दायरा बहुत बडा होता है,जिसमें रसों के नवरंग,रंगों के नवरंग,नौं कलाएं जीने की,नौं ढंग मरने के हो जाते हैं,क्षितिज की तरह जहां सीमाएं,सीमाएं न रह कर,क्षितिज हो जाती हैं,बस.
   अह्सासों से परे जीना संभव नहीं है और जब संभव नहीं है, तो सही अह्सासों के साथ जीने में
बुराई क्या है?
ईश्वर ने अह्सासों का पिटारा हमारे सामने खोल दिया है,अब चुनाव करने की जिम्मेदारी हमारी ही है.

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