जिस,बर्फ़ के फ़र्श पर
हम-तुम,चले थे,चार कदम,साथ-साथ
वो,अभी पिघली नहीं है---
बेशक: ,छूटे हुए कदमों के निशां,दिखते नहीं हैं
पर,उस पिघली हुई,बर्फ़ के फ़र्श पर---------
इंतज़ारों में,नज़र आते हैं,अब तलक—
बेशक:,वो हमारी सांसों के,अनछुए गीत,कुछ खामोश से हैं
पर,उस पिघली हुई बर्फ़ के फ़र्श पर----
थिरकते हैं,अब तलक-----
बेशकः,हाथों की हथेलियों में,वो,साथ जीने-मरने की कसमें,हैं दफ़न
पर,उस पिघली हुई,बर्फ़ के फ़र्श पर------
उनकी मज़ारों पर, फूल महकते हैं,अब तलक----
बेशकः,आंखों से टपकी,चार बूंदे,गिरी थी,जो जुदाई में
पर,उस पिघली हुई,बर्फ़ के फ़र्श पर--------
हकीकतों के बुलबुलों सी,झलकती हैं अब तलक---
बेशकः,दूर बर्फ़ की चोटियों के उस पार से,चटकती हैं ,हसरतें
पर,उस पिघली हुई,बर्फ़ के फ़र्श पर---
इंद्रधनुष सी झिलमिलाती हैं,अब तलक----
तुम,आओ कि ना आओ
हर्ज़ कोई भी नहीं-----
पर,उस पिघली हुई,बर्फ़ के फ़र्श पर---
जो,अभी पिघली नहीं है-----
ढूंढ ही लेंगे उन्हें हम,कभी ना कभी----
उन,कदमों के निशां,जो पिघले नहीं हैं---
मन के-मनके
यूँ उजालों से वास्ता रखना
ReplyDeleteशम्मा के पास ही हवा रखना...
बर्फ के फर्श पर...निशान खोजने की कोशिश कुछ ऐसी ही है...
जिस,बर्फ़ के फ़र्श पर
ReplyDeleteहम-तुम,चले थे,चार कदम,साथ-साथ
वो,अभी पिघली नहीं है---waah
नहीं दिखती पर ऐसे ही अंकित होती है भावनाएं.. बर्फ के फर्श पर!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteढूंढ ही लेंगे उन्हें हम,कभी ना कभी----
उन,कदमों के निशां,जो पिघले नहीं
ढूंढ ही लेंगे उन्हें हम,कभी ना कभी----
ReplyDeleteउन,कदमों के निशां,जो पिघले नहीं
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सादर
काश कदमों के निशां बने रहें।
ReplyDeleteतुम,आओ कि ना आओ
ReplyDeleteहर्ज़ कोई भी नहीं-----
सुंदर प्रस्तुति.
बहुत ही नई कल्पना.
ReplyDeleteबर्फ में भी जलन होती है
एक उम्र की तपन होती है
बीती यादों की हवि डालो तो
जिंदगी एक , हवन होती है.