बन,विहग,वन-वन,विरहू
पीहू-पीहू,पन----पीवूं
प्रिय-पनघट पर
तेरी,तृप्ति-तरण,तट-तक
अंतरमन,आल्हादित-आला
हिय-होय,हाला-हालाहल
मन में,मादक,मधुमय-मधुशाला
मोर-मयूर,मोरा मन,मन में मस्त-मस्त
मन,मुक्त-मुक्त,मयूरी-मोरा
मन के-मनके
नादमयी अभिव्यक्ति।
ReplyDelete--
ReplyDeleteनाचे तन-मन,मगन,इत-उत आँगन
थिरके अंग-अंग,चंचल,चितवन
नयन चपल,हुलसे तन मोरा...
bahut sundar.
ReplyDeleteसुन्दर प्रयोग!
ReplyDeleteप्रयोग में ही सृजन की संभावना छुपी है।
ReplyDeleteक्या बात है! अनुप्रास की छटा बिखरी है यहां पर। इतना सुंदर अलंकृत रचना आजकल देखने को भी नहीं मिलती। आभार आपका इस विधा को जीवित रखने के लिए।
ReplyDeleteअनुप्रास अलंकार का बढ़िया प्रयोग...
ReplyDeleteबढ़िया प्रयोग... सुन्दर रचना..
ReplyDeleteसादर...
अलंकारों का सुंदर प्रयोग,अच्छी प्रस्तुती...बधाई ....
ReplyDeleteसुन्दर स्वरमयी प्रस्तुति बधाई स्वीकारें
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