Friday, 28 October 2011

एक प्रयोग

बन,विहग,वन-वन,विरहू
पीहू-पीहू,पन----पीवूं
प्रिय-पनघट पर
                         तेरी,तृप्ति-तरण,तट-तक
                         अंतरमन,आल्हादित-आला
                         हिय-होय,हाला-हालाहल
       मन में,मादक,मधुमय-मधुशाला
मोर-मयूर,मोरा मन,मन में मस्त-मस्त
मन,मुक्त-मुक्त,मयूरी-मोरा
मन के-मनके


10 comments:

  1. नादमयी अभिव्यक्ति।

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  2. --
    नाचे तन-मन,मगन,इत-उत आँगन
    थिरके अंग-अंग,चंचल,चितवन
    नयन चपल,हुलसे तन मोरा...

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  3. प्रयोग में ही सृजन की संभावना छुपी है।

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  4. क्या बात है! अनुप्रास की छटा बिखरी है यहां पर। इतना सुंदर अलंकृत रचना आजकल देखने को भी नहीं मिलती। आभार आपका इस विधा को जीवित रखने के लिए।

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  5. अनुप्रास अलंकार का बढ़िया प्रयोग...

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  6. बढ़िया प्रयोग... सुन्दर रचना..
    सादर...

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  7. अलंकारों का सुंदर प्रयोग,अच्छी प्रस्तुती...बधाई ....

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  8. सुन्दर स्वरमयी प्रस्तुति बधाई स्वीकारें

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