शीशे की खिडकी से,सरक
निःशब्द कदमों से चल
सूरज का,एक कतरा
मां के आंचल सा, मुझको ढक गया
कभी ऐसा लगा कि
क्लांत-थका सा चूर होकर
लुढकते पैरों से ,नन्हा सा चल
मां के आंचल से,मुंह ढक कर,सो गया
कुछ दिन हुए------
दहकता आग का गोला
आसमान से,नीचे उतर
घर के,कोने-कोने को
कर रहा था,भस्म
उनींदी सी पडी, भविष्य की गोद में
आज,पहली बार------मैने
धधकते------आज को
अपनी गोद में,भर लिया
आग की लपटों से,घिरा
एक सूरज, बीते दिनों का
भस्म करने को,बेताब था
हज़ारों मील,पीछे रह गया----
मन के--मनके
स्वप्नों में वह चमक बनी रहे।
ReplyDeleteHappy Dushara.
ReplyDeleteVIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
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MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.
बहुत सारे उमड़ते घुमड़ते भावों की साथ सुन्दर छाया वादी पंक्तियाँ....
ReplyDeleteविजयादशमी की सादर बधाईयाँ....
भावों की गहरी अभिव्यक्ति है ...
ReplyDeleteविजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
खुबसूरत भाव भरी कविता
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
gahan abhivyakti..bijay dashmi ki hardik shubhkamnaon ke sath
ReplyDeletebahut khubsurat bhavo se rachi ye rachna....man ke bhav...jhlakte hai
ReplyDeleteजिसने वर्तमान में जीना सीख लिया उसके लिए जिंदगी आसान हो जाती है।
ReplyDeleteवैसे तो आपकी चर्चा हर जगह हैं फ़िर भी कोशिश की है देखियेगा आपकी उत्कृष्ट रचना के साथ प्रस्तुत है आज कीनई पुरानी हलचल
ReplyDeletejindigi ke geet gati kavita....badhiya
ReplyDeleteवर्तमान का ही महत्त्व है!
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