Friday 1 April 2011

टेसू के फूल

न जाने,मुझे टेसु के फूल
इतने क्यों---- भाते हैं
         लाल धधकते अंगारे से
         ऊंची डाली पर लटके झूले से
टीक-दुपहरी में भी
मन को ठंडक दे जाते हैं
         चैत्र की चटकती धरती पर
         विदा लेती है- जब हरियाली
तब ठूंढ हुए पेडॊं की डाली पर
झूमर से जड़---- जाते हैं
         न जाने मुझे टेसू के फूल-------
लगता है, गर्म हवाओं ने भी
अंगडाई ले ली----- है
          गांव-गांव गोरी की चूदर
          गोरी क मुख, खोले है
हर चूनर की ओटक में
लाल धधकते होठों पर
          मुझे टेसू के फूल
          नजर क्यों आते हैं
न जाने मुझे------
        अलसाई गोरी की आंखों में
       लाल डोरे से खिंच जाते हैं
उसमें भी झलक मुझे, आती है
टेसू के फूलों की
     ना जाने , मुझे टेसू के फूल
            होली की रंगो की होली
            टेसू सी सुर्ख हुई है ,अब
जब धरती भी रंग जाती है
सुर्ख-धधकते, टेसू के फूलों सी
            ना जाने, मुझे टेसू के फूल
           इतने क्यों ---- भाते है

                                                  उमा (मन के- मनके)       

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर रंगी है आपने कविता टेसू के रंगों से ... एक सुन्दर कविता ... सादर

    ReplyDelete
  2. टेसू के फूलों में एक विचित्र आकर्षण होता है।

    ReplyDelete
  3. अलसाई गोरी की आंखों में
    लाल डोरे से खिंच जाते हैं
    उसमें भी झलक मुझे, आती है
    टेसू के फूलों की...
    aapki poori bhawnaaon me tesu rang mile , bahut achhi rachna

    ReplyDelete
  4. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  6. सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...जैसे टेसू का फूल हो

    ReplyDelete
  7. टेसू के फूल सी ही सुन्दर कविता.

    ReplyDelete
  8. सुन्दर रचना, बधाई...

    ReplyDelete