आज की आपा - धापी में, जिन्दगी के कुछ आधार - भूत मूल्य , कभी - कभी , सड्कों पर गिरे हुए भी मिल जाते हैं . अतः , कोशिश करतें रहें , जीवन में , जीवन के प्रित आशा बनी रहे .
इसी , सन्दर्भ में एक छोटी सी घटना के अनुभव को आप सबके साथ बांट्ना चाहती हूं .
कुछ दिन पूर्व , मैं किसी कार्यवश रिक्शे से गयी. उस रिक्शे वाले से मैंने , आने जाने के लिये किराया तयकर लिया . दोनों तरफ़ का किराया चौबीस रुपये तय किया.
कुछ कार्य - वश, एक जगह मैं , कुछ देर के लिये एक स्थान पर रुकी . इस बीच रिक्शएवाले ने भी दस रुपए मांगे, कुछ खाने के लिये . अतः मैंने ,उसे दस रुपये दे , दिए यह कहते हुए कि बाकी पैसे घर पहुंचकर दें देंगे
कुछ देर बाद घर बापसी पर रिक्शे वाले को तीस रूपय देते हुए कहा ५ रूपय वापस दो क्यो कि रिक्शे का भाडा २५ रूपय तय हुआ था !
रिक्शे वाले ने धीरे से कहा आप मुझे पैसे ज्यादा दे रही है यही क्रम मैने दो तीन बार दोहराया और
रिक्शे वाले ने भी बार- बार वही उत्तर दिया ’आप पैसे ज्यादा दे रही है तब मैं थोडा झुंझलाई ’ क्या तुम्हे हिसाब समझ नही आता बडे़ संयत व शांत भाव से उसने फिर वही बात दोहराई औए कहा - ’ आप मुझे १० रूपय पहले ही दे चुकी है जब तक मैं उसकी बात समझ पाऊ वह मेरे हाथ पर १५ रूपय रख कर जा चुका था
अतः जीवन की राहो पर चलते हुए , धूल मे पडे चांदी के सिक्को को ढूढते हुए चलना चाहिए जीना आसान हो जाता है और मकसद मिल जाते है
उमा (मन के - मनके)
इसी , सन्दर्भ में एक छोटी सी घटना के अनुभव को आप सबके साथ बांट्ना चाहती हूं .
कुछ दिन पूर्व , मैं किसी कार्यवश रिक्शे से गयी. उस रिक्शे वाले से मैंने , आने जाने के लिये किराया तयकर लिया . दोनों तरफ़ का किराया चौबीस रुपये तय किया.
कुछ कार्य - वश, एक जगह मैं , कुछ देर के लिये एक स्थान पर रुकी . इस बीच रिक्शएवाले ने भी दस रुपए मांगे, कुछ खाने के लिये . अतः मैंने ,उसे दस रुपये दे , दिए यह कहते हुए कि बाकी पैसे घर पहुंचकर दें देंगे
कुछ देर बाद घर बापसी पर रिक्शे वाले को तीस रूपय देते हुए कहा ५ रूपय वापस दो क्यो कि रिक्शे का भाडा २५ रूपय तय हुआ था !
रिक्शे वाले ने धीरे से कहा आप मुझे पैसे ज्यादा दे रही है यही क्रम मैने दो तीन बार दोहराया और
रिक्शे वाले ने भी बार- बार वही उत्तर दिया ’आप पैसे ज्यादा दे रही है तब मैं थोडा झुंझलाई ’ क्या तुम्हे हिसाब समझ नही आता बडे़ संयत व शांत भाव से उसने फिर वही बात दोहराई औए कहा - ’ आप मुझे १० रूपय पहले ही दे चुकी है जब तक मैं उसकी बात समझ पाऊ वह मेरे हाथ पर १५ रूपय रख कर जा चुका था
अतः जीवन की राहो पर चलते हुए , धूल मे पडे चांदी के सिक्को को ढूढते हुए चलना चाहिए जीना आसान हो जाता है और मकसद मिल जाते है
उमा (मन के - मनके)
सहज और सरल, ऐसे लोग ही धरा धारण किये हैं।
ReplyDeleteआज के समय में ऐसे अनुभव बिरले ही बचे हैं ।
ReplyDeleteदुनिया ऐसे ही ईमानदारों के बल पर ही आज तक टिकी है!
ReplyDeleteकम लेकिन इन्सानियत और ईमानदारी कहीं तो बाकी है ही...अच्छा संस्मरण.
ReplyDelete