जरा,थोडा सा नज़दीक तो आइये-----
अपनी गर्म हथेलियों से,मेरी नर्म उंगलियों को
जरा,थाम तो लीजिये-----
यह सफ़र,तुम्हें भी,करना है तय
मुझे भी,नापने हैं,मीलों के निशां—
यह सफ़र,यूं ही चलता रहेगा---
संवादों की कोई जरूरत भी नहीं है
बातों के बगैर भी----
दूरियां कम हो ही जाएंगी---
जब,तुम्हारी हथेलियों में दौडता लहू
मेरी उंगलियों को छू जाएगा----
और,वहां से,हृदय तक संवादों की डोर
जुड जाएगी,हमारे-तुम्हारे बीच---
सब कुछ,कहना हो जायेगा,संवादों के बिना
हर अहसास जो मर से गये हैं
पुनः,सांस लेने लगेगें----
आंखो में,तैरती ’किरकिरी’
दूरियों की
गीली जमीन सी हो जाएगी—
जहां उग आएंगे कुछ पौधे
उन बीजों में से,जो बोये ही नहीं
और,खुशबुएं फ़ैल जायेंगी----
हमारे-तुम्हारे बीच,बहती हवाओं में
जहां,संवाद होगें,खुशबुओं के शब्दों में
और,शब्द बे-अर्थ हो जाएंगे----
जरा,थोडा सा नज़दीक तो आइए---
सफर यूं ही चलता रहे ...नजदीकियां बनी रहें तो जीवन आसान हो जाता है ...
ReplyDeleteढाढस बँधाये रखने के लिये एक स्पर्श ही पर्याप्त है।
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteआशा और विश्वास हो तो हर सफर आसान हो जाता है, सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
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