संसार के अन्य देशों की रानैतिक
’आवोहवा’ का तो ग्यान नहीं है क्योंकि वहां की हलचल-हजारों मील के फ़ासलों की वजह
से,हलचल नहीं रहती बस ’खबरों’ के पन्नों में,इधर-उधर भटक सी जाती है या यूं
कहें,हम जैसे समझदार महानुभाव-केवल अपने आंगनों की मुडेरों पर बैठे कौवों की
कांव-कांव ही सुनने की समझ रखते हैं.
हमारे देश में ’राजनैतिक माहो्ल’ मानसून की
बारिश की तरह खुशगुबार चल रहा है—बडी-बडी उठा-पटक चलती रहती है—जैसे बारिश के बाद ट्रेफिक
जामों में आज-कल चल रही है,एक जाम से जान छुडा कर जैसे-तैसे निकलो दूसरा जाम
जकड्ने के लिये तैयार है—यह ’जा्म’ वह ’ज़ा्म’ नहीं है जो खुमारी दे जाय यह तो
खुमारी को उडा कर ले जाता है.
आज की खबरों में से एक छोटा सा टुकडा , जो
कानों में पड गया (चूंकि, खबरों की खबर लेने का मन नहीं करता,एक खबर एक दिन के नाम
हो जाती है. हर चैनल उस खबर की रुई सी धुनता रहता है.एक खबर इतनी रट जाती है कि
सपनों में भी वही खबर चलती रहती है.)
कि-सोनिया जी ने डिनर आयोजित किया है,ममता
बनर्जी को निमंत्रण भिजवाया गया है और ममता जी ने निमंत्रण ठुकरा दिया.
समझ नहीं आ रहा यह चलन, हमने तो संस्कारों में
यही चलन पाया कि शत्रु के निमंत्रण को भी सिर माथे लेना चाहिये-परंतु ये राजनैतिक
चलन जिसके संस्कार,भाग्यवश हमें नहीं दिये गये.
बडा गूढ रहस्य है—डिनर आयोजन,निमंत्रण और
इंकार.
कुछ प्रबुद्ध सज्जनों से झिझकते हुए पूछा कि—माज़रा
क्या है?
सोचते होंगे पढे-लिखे होकर भी खबरें नहीं
देखते-सुनते और मतलब भी नहीं समझते.
उनके द्वारा दिये ग्यान के आधार
पर,थोडा-थोडा समझ आया—आज की राजनीति इसी ’सूत्र’ पर
चलती है.
यह उठापटक नहीं बूझती है..
ReplyDeleteराजनीती के संस्कार भी अलग ही हुआ करते हैं.उनके पीछे भी कोई राजनीती होती है.
ReplyDeleteराजनीति के चलन और चाल बदल गए हैं आजकल ... नियम कायदे भी बदल गए हैं ...
ReplyDeleteजी हाँ,
ReplyDeleteराजनीति में कब क्या हो जाये कुछ पता नहीं।