Thursday, 12 July 2012

एक समीक्षा---


’क्षितिजा’ के नाम

                      अनु चौधरी द्वारा परिकल्पित

’क्षितिजा’ का आरम्भ-बिंदु-’असमंजस’ है.

जीवन का हर पडाव ’असमंजस’ की धुंध से घिरा है.हालांकि इस धुंध को काटता एक उजाला भी है जो जीने के नये रास्तों को रोशन भी करता है.

’ज़िंदगी’-मेरे विचार से,उलझा हुआ ऊन का गोला है यदि उसे सुलझाने बैठे तो सुलझ जाता है.

कवियत्री सुश्री अनु जी ने इन्हीं उलझनों में, कुछः बीती यादों को खूबसूरती से उकेरा है—वे यादें जो फुटपाथों पर हमकदम हैं—कहीं-कहीं ज़िंदगी के प्रति,इनका दॄष्टिकोंण नकारात्मक भी दिखा, शायद उस अंधेरे से ही उजाले की किरण की तलाश में.

’प्यार’ के अनेक रंगों को जिया है अनु जी  ने—मिलन का रंग,विछोह का रंग,आंसुओं में ढलकता प्यार,अकेलेपन का अहसास लिये प्यार,इंतजार में प्यार,देहलीज पर बैठा हुआ—

प्यार में भरोसा भी जिया,दिलासा से आंचल भी भरा.

बारिश में,टपकती गरीबी का अहसास,खुद से हट कर औरों के दर्द को भी जिया है,अनु जी ने

मानवता का दर्द उन्हें पीडा देता है,रिश्तों की दरकती दीवारों में से जीवन को देखने की कोशिश और पथरीला अहम जो विभ्रम करता है सहज जीवन को,शब्दों में पूरे अहसास के साथ उकेरा है.

अपनी पहचान—थोडी सी पागल,दीवानी,दिल के करीब—फिर भी मैं खुश हूं.

बचपन की यादों को भी जिया है जो हम सब के साथ हैं शायद सबसे मीठी.

नारी के अंतर्मन के हर अहसास को,उन्होंने बखूबी जिया है शब्दों के माध्यम से.

मैं,अपने छोटे से प्रयास को,अरमानों के पंख देकर,नये सपनों की उडान देना चाहती हूं.

अनु जी,पीडा ना हो तो सुख का अहसास कहां? आंसू ना हो तो मुस्कान बेमानी है—जीवन दो ध्रवो का मिलन है.

आशा है आपके अहसासों से,आमना-सामना होता रहेगा.

शुभकामनाओं के साथ,

                      मन के-मनके

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