१.होश-ए-ज़िंदगी,यूं सरक गई---
ढूंढते हुए-फ़कत,इस पल के वज़ूद को
और वो भी,मुठ्ठी से सरक गया
यूं, बे आवाज-----
२.किताबे-ज़िंदगी------
वर्क-दर-वर्क, रोज़ पढती हूं
अगली सुबह,पहला वर्क ही,
पलटती हूं------
३.ये,बेपनाह खोज---बेनपे रास्ते
चलती हूं, रोज़,अल-सुबह---
शाम गुज़रती है----और
मैं,वहीं पर खडी हूं---
४.कशमशे-कश-ज़िंदगी,उभर आई है
यह भी ज़िंदगी है—लहज़ा है,जीने का
ज़िंदगी—फ़र्श नहीं,संगमर्मर का—
तभी तो,संभल-संभल जाते हैं
वरना---
जीवन का यथार्थ ....
ReplyDeleteबस कट जायेगी यू ही जिंदगी???
जिंदगी के सभी फलसफे खुरदरी जमीन पे चल के सीखे ... और कलम से उतारे हुवे हैं ... अंत में जैसे भी हो कट ही जाती है जिंदगी ...
ReplyDeleteबहुत सही इस जीवन का याथर्थ..सटीक
ReplyDeleteहर बार संभल जाते हैं, धरती बाँधती है।
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