दर्द जब रीत जाता है,
आंखें तब सूख जाती हैं,
आंखें जब रीत जाती हैं,
तब मन तट विहीन हो जाता है,
किसी के जाने के बाद,
न आने की उम्मीद से,
मन के तारों------ को,
छेडना- ------ही होगा,
किसी के खोने के बाद,
न पाने की उम्मीद में,
मन के मरुस्थल को,
सींचना ही----- होगा,
नहीं तो मन के तटों को,
बिखरने से रोकना-------,
नामुम्किन हो जाएगा,और,
मन का मरुस्थल,असीमित हो जाएगा,
तब कौन,
असिंचित भविष्य बीजों को,
दर्द के बादलों से गिरती,
ओस-बूदों की चादर से,
ढक -----------पायेगा, उन्हें,
इसलिए,
हर रोज़ इस दर्द को पीती,,
और ,
हर रोज़ इसे भर लेती हूं,
मन के-मनके
आंखें तब सूख जाती हैं,
आंखें जब रीत जाती हैं,
तब मन तट विहीन हो जाता है,
किसी के जाने के बाद,
न आने की उम्मीद से,
मन के तारों------ को,
छेडना- ------ही होगा,
किसी के खोने के बाद,
न पाने की उम्मीद में,
मन के मरुस्थल को,
सींचना ही----- होगा,
नहीं तो मन के तटों को,
बिखरने से रोकना-------,
नामुम्किन हो जाएगा,और,
मन का मरुस्थल,असीमित हो जाएगा,
तब कौन,
असिंचित भविष्य बीजों को,
दर्द के बादलों से गिरती,
ओस-बूदों की चादर से,
ढक -----------पायेगा, उन्हें,
इसलिए,
हर रोज़ इस दर्द को पीती,,
और ,
हर रोज़ इसे भर लेती हूं,
मन के-मनके
अपने मन का उपवन सँवारने के लिये अपना ही नयनजल बहाना पड़ता है, सुन्दर कविता।
ReplyDeleteअच्छी जज़बाती रचना प्रस्तुत की है आपने!
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteआस का संचार करती बहुत ही सुन्दर रचना....