जीवन-यात्रा,कभी‘-कभी विचित्र,अनसोचे मोडपर आ जाती है-उस समय सम्पूर्ण आस्तित्व चमत्कारिक जान पडता है. अंधेरे छटने लगते हैं, इतना प्रकाश फ़ैल जाता है कि आंखें चकाचौंध होने लगती हैं. और,यही वह छण हैज ब ईश्वर की कल्पना साकार रूप में सामने आने लगती है. ग्यानी महापुरुष जीवन भर,साधनाओं से मुक्तन हीं हो पाते हैं और अधिकतर साधनाओं के मकड्जाल मेम उलझे,इस दुनिया से रुखसत भी हो लेते हैं और ईश-बोध से वंचित रह जाते हैं. ईश-बोध के लिए,सन्यास,साधना आदि की बाध्यता नहीं है.ऐसा मेरा मानना है. ईश्वर,एक अनुभूति हो-जीवन-यात्रा इस बोध से जारी रहे कि उस अनुभूति की ओस की हर बूंद को उंगलिओं की पोरों पर रख महसूस कर सकें, देख सकें रंगों का नृत्य सा जारी है--ईश-अनुभूति है. अपने भावों को मुक्त रखें,हर पल,हर घटना जो घट रही है उसे महसूस करते रहें. घटनाओं को अनुभूतिऒं के धागे में,मोती की तरह पिरो कर देखिए, पूरी की पूरी माला नज़र आने लगेगी. अनुभूतियो गहराइयों में गोते लगाने की कोशिश रहे --हर अनुभूति अपने-आप में संपूर्ण मोक्ष है-ईश-दर्शन है,यह. कभी-कभी लगता है-जीवन-यात्रा के दौरान जिन लोगों से मिलना-जुलना -बिछुडना होता है,वह भी,आकस्मिक नहीं होता है.यदि कुछ क्षण, आंख मूंद कर ऐसी घटनायों को,अनुभूतियों को अंतः तल पर महसूस किया जाय तो हमें उत्तर मिलने लगते हैं. ये उत्तर संकेत हैं--हमारे कुछ ऐसे सम्बन्धों की ओर--जिनसे हम पिछले जन्मों से कहीं न कहीं,किसी न किसी रूप में जुडे थे और उनके साथ कुछ आदान-प्रदान अधूरे रह गए या यूं भी समझा जा सकता है--प्रारब्ध उन्हें दूसरे जन्मों के लिए बचाकर रखे था--यह भी सोचा जा सकता है. अतः बहुत सी अनुभूतियां हैं,हर दिन,हर पल, आत्मसात करने के लिए और प्रारब्ध की अवधारणा को स्वीकार करने के लिए. बस,अनुभूतियों को स्पर्श करें,पोरों से,घास परगिरी बूंदों की तरह. ध्यान रहे ये बूंदें बिखरे न अन्यथा इनमें झिलमिलाता इनद्रधनुष ईश-अनुभूति का बिखर जाएगा. मन के - मनके |
Monday, 11 July 2011
एक माला अनुभूतियों की----
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यह अनुभूतियों की अभिव्यक्ति अच्छी रही!
ReplyDeleteअपने भावों को मुक्त रखें,हर पल,हर घटना जो घट रही है उसे महसूस करते रहें.
ReplyDeleteघटनाओं को अनुभूतिऒं के धागे में,मोती की तरह पिरो कर देखिए, पूरी की पूरी माला नज़र आने लगेगी.
मन के भावो की सटीक व्याख्या
न जाने कितने संकेत हम समझ नहीं पाते हैं जीवन के।
ReplyDeleteध्यान रहे ये बूंदें बिखरे न अन्यथा इनमें झिलमिलाता इनद्रधनुष ईश-अनुभूति का बिखर जाएगा....
ReplyDelete-अनुभूतियों को अहसासने का यही तरीका है आत्मसात करने हेतु!!! उम्दा आलेख.
अपने भावों की सटीक व्याख्या
ReplyDeleteअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
सुन्दर सार्थक चिंतन....
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