Thursday, 24 September 2020

 प्रारब्ध :

आगे---

ये जीवन यात्राएं एक गंतव्य से प्रारम्भ होकर पहुंच कहां जाती हैं,यही जीवन का रहस्य है,जीवन का सत्य है,जीवन का दर्शन भी.

कभी,कभी लगता है,हम इस अपराध के दोषी हैं ,लेकिन कभी, कभी परिस्थियां हमसे वो करवा लेती हैं जिसे कभी विचारा भी नहीं जा सकता.

मैं, जीवन  धाराओं को 'प्रारब्ध' की परिकल्पना की अवधारणा में बांध कर देखती  हू.

जब कभी इतिहास के झरोके में झांका जाय तो अक्सर इस प्रारब्ध परिछाई स्पष्ट दिखाई देती है.

एक उधाहरण लेकर इसा बात को आगे बढाया जा सकता है---

चक्रवर्ती सम्राट अशोक का साम्राज्य भारत के सुदूर उत्तर से लेकर,मध्यभारत तक फैला हुआ था.

सम्पूर्ण राज्य समृध व उन्नति की औरअग्रसर था, जैसा की इतिहास की पुस्तकों में पढ़ा करते थे.

ऐसा क्या कारण था---

सम्राट अशोक को कलिंग प्रदेश पर आक्रमण करना पडा ?

भयंकर नरसंहार के वे कारण बने?

प्रारब्ध--

उन्हें उस दिशा की और लेकर चल निकला था जहां से बुध्तत्व की यात्रा प्रारम्भ होनी थी!

गंतव्य सेआगे, अगली पोस्ट में---











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