प्रेम-----
बहुत आसानी से कहा जाने वाला शब्द है.
और, बहुत कम समझने वाला शब्द है.
हम सभी एक दूसरे से जुड़ना चाहते हैं और
सभी जुड़ाव हमारे अहम् पर टिके हुए हैं.
और ,इन जुडावोम का अंतिम सत्य बिखराव है.
स्वम से जुड़ना सम्रगता से जुड़ना है.
' शब्दों' के घेरे में हम जीते हैं.
'शब्द' स्वजनित होते हैं.
जैसे एक मकडी अपने बुने जाल में जीती है.
जब शब्दों की दीवारें करीने से चिनी जाती हैं----
तभी उन दीवारों पर अनुभूतियों के फूल खिलते हैं.
'शब्दों' के बगैर अनुभूतियां अधूरी हैं ,
अनुभूतियों के बगैर अभिव्यक्तियां.
अनुभूतियों के बगैर ,अभिव्यक्तियां सुवासित नहीं होतीं.
मित्रों--आपसे मेरा परिचय पुराना है,दो,तीन बरस से कलम ठहर सी गयी थी या कि,कहने को बहुत कुछ था और कह नहीं पा रही थी.
ReplyDeleteआशा है,आप मुझे पढ़ेगें हैं,और---
धन्यवाद.
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
नमस्कारं शास्त्री जी धन्यवाद.
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