हर शब्द में---एक
प्रश्न,हर प्रश्न में एक छटपटाहट,
हर छटपटाहट में---एक-एक
सांस की चाहत---कि,बस
जी लूं---जी लूं---बस.
इसी संदर्भ में आगे लिये
चलती हूं---पिछले दो दिनों की,दो घटनाओं के साथ,जिसके आले से
झांकती—जिंदगी---कभी
झांकती मौत.
दो दिन पूर्व तीन लोग एक कार
में सवार हो,एक शहर से लौट रहे थे अपने शहर,अपने
घर की ओर---अचानक एक और
गाडी ने यू टर्न लिया और सामने वाले कट से उलटी दिशा की
ओर बढने लगी---और उसी समय
दूसरी दिशा से,तेज गति से आती कार----बस एक पल---तेज घर्षण---और आले से झांकती मौत----और
जिंदगी ने हाथ थाम लिया
दूसरी घटना कल शाम
की---मैं अपनी बहन के यहां रुकी हुई थी.उनका घर मेंन रूट (दिल्ली) रेलवे लाइन से
कुछ मीटर की दूरी पर है---सामने से लाइन को पार करने के लिये एक रास्ता—और तभी एक
नवयुवक बात करता हुआ आगे बढता रहा---और तेज गति से आती हुई रेलगाडी की धडधडाती हुई
आवाज के बीच में एक और आवाज---कि जैसे कुछ फूट गया हो---
और कुछ टूटती सांसे—लोगों
का जमावडा,घरों से झांकती औरतें,बच्चों का शगल----और एम्बुलेम्स बुलाओ?
जेबें टटोली गयीं पता-फोन
नंबर?
और कोई नहीं आया-- अपना
अपने घर से?
आई तो पुलिस---एक
पंचनामा---और एक चादर में लिपटी एक जिंदगी---एक नौजवान—जो अभी-अभी सांस ले रहा था,बातें
कर रहा था---अब बे-नाम,गुमशुदा---और यूं आई मौत.
जिम्दगी यूं भी खामोश
होती है?
एक दौड क्यूं
और ठौर ये---
फिर कहर क्यूं
रुको,सोचो---
मन को छूते भाव
ReplyDeleteकमाल की प्रस्तुति
बधाई
बस यही पल भर जीना नहीं हो पाता शान्ति से .... उम्र भर की दौड़ ... न दौड़ें तो क्या ...
ReplyDeleteयही जिंदगी है ...सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteयही जिंदगी है ...सुन्दर प्रस्तुति.
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