Friday 1 May 2015

बहुत सुंदर समीर जी.


हर शब्द में---एक प्रश्न,हर प्रश्न में एक छटपटाहट, 

हर छटपटाहट में---एक-एक सांस की चाहत---कि,बस

जी लूं---जी लूं---बस.

इसी संदर्भ में आगे लिये चलती हूं---पिछले दो दिनों की,दो घटनाओं के साथ,जिसके आले से

झांकती—जिंदगी---कभी झांकती मौत.

दो दिन पूर्व तीन लोग एक कार में सवार हो,एक शहर से लौट रहे थे अपने शहर,अपने

घर की ओर---अचानक एक और गाडी ने यू टर्न लिया और सामने वाले कट से उलटी दिशा की

ओर बढने लगी---और उसी समय दूसरी दिशा से,तेज गति से आती कार----बस एक पल---तेज घर्षण---और आले से झांकती मौत----और जिंदगी ने हाथ थाम लिया

दूसरी घटना कल शाम की---मैं अपनी बहन के यहां रुकी हुई थी.उनका घर मेंन रूट (दिल्ली) रेलवे लाइन से कुछ मीटर की दूरी पर है---सामने से लाइन को पार करने के लिये एक रास्ता—और तभी एक नवयुवक बात करता हुआ आगे बढता रहा---और तेज गति से आती हुई रेलगाडी की धडधडाती हुई आवाज के बीच में एक और आवाज---कि जैसे कुछ फूट गया हो---

और कुछ टूटती सांसे—लोगों का जमावडा,घरों से झांकती औरतें,बच्चों का शगल----और एम्बुलेम्स बुलाओ?

जेबें टटोली गयीं पता-फोन नंबर?

और कोई नहीं आया-- अपना अपने घर से?

आई तो पुलिस---एक पंचनामा---और एक चादर में लिपटी एक जिंदगी---एक नौजवान—जो अभी-अभी सांस ले रहा था,बातें कर रहा था---अब बे-नाम,गुमशुदा---और यूं आई मौत.

जिम्दगी यूं भी खामोश होती है?

एक दौड क्यूं

और ठौर ये---

फिर कहर क्यूं

रुको,सोचो---

कुछ पल को जीलो जरा.



                                                             

 

4 comments:

  1. मन को छूते भाव
    कमाल की प्रस्तुति
    बधाई

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  2. बस यही पल भर जीना नहीं हो पाता शान्ति से .... उम्र भर की दौड़ ... न दौड़ें तो क्या ...

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  3. यही जिंदगी है ...सुन्दर प्रस्तुति.

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  4. यही जिंदगी है ...सुन्दर प्रस्तुति.

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