जब छोटी थी
तब,मां ने सिखाया था
गलीचे के धागों को पिरोना
हजारों गाठों को हजार गाठों से जोड़ना
एक बार भूल हो गई
गलीचे की हजार गांठों में
एक गांठ कहीं छूट गई
और गलीचे पर उभरे
मोर-पंखों की पांते
बिखर गई थीं.....
तब,सोचा कि
उधेड़ कर फिर से
हजार गांठों से
हजार गाठें जोड़ दूं
पर फिर वो जुनून न था
जो पहले जीवन में भरा था
अब वह रीत गया था
और गांठों के मोर-पंख
कही बिखर गये थे......
तब,मां ने कहा था
अब तुम रिश्तों के गालीचे पर
रिश्तों के मोर-पंख बिनोगी
ध्यान रखना कि एक भी गांठ रिश्ते की
कही छूट न जाय
मोर-पंख टूट कर बिखर जाएगें
तब रिश्तों का गलीचा
दरवाजे पर बिछा
एक पैर-दान की तरह बिछ जायगा
(मन के-मनके)
तब,मां ने सिखाया था
गलीचे के धागों को पिरोना
हजारों गाठों को हजार गाठों से जोड़ना
एक बार भूल हो गई
गलीचे की हजार गांठों में
एक गांठ कहीं छूट गई
और गलीचे पर उभरे
मोर-पंखों की पांते
बिखर गई थीं.....
तब,सोचा कि
उधेड़ कर फिर से
हजार गांठों से
हजार गाठें जोड़ दूं
पर फिर वो जुनून न था
जो पहले जीवन में भरा था
अब वह रीत गया था
और गांठों के मोर-पंख
कही बिखर गये थे......
तब,मां ने कहा था
अब तुम रिश्तों के गालीचे पर
रिश्तों के मोर-पंख बिनोगी
ध्यान रखना कि एक भी गांठ रिश्ते की
कही छूट न जाय
मोर-पंख टूट कर बिखर जाएगें
तब रिश्तों का गलीचा
दरवाजे पर बिछा
एक पैर-दान की तरह बिछ जायगा
(मन के-मनके)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-05-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1989 में दिया गया है
ReplyDeleteधन्यवाद
तब,मां ने कहा था
ReplyDeleteअब तुम रिश्तों के गालीचे पर
रिश्तों के मोर-पंख बिनोगी
ध्यान रखना कि एक भी गांठ रिश्ते की
कही छूट न जाय
मोर-पंख टूट कर बिखर जाएगें
तब रिश्तों का गलीचा
दरवाजे पर बिछा
एक पैर-दान की तरह बिछ जायगा
सटीक कथन
उत्तर दो हे सारथि !
बहुत सुंदर भाव और मां की सीख को अपनी पंक्तियों में हम तक पहुंचाया आपने...
ReplyDeleteVery beautiful feelings.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव, खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeletehttp://chlachitra.blogspot.in
http://cricketluverr.blogspot.in
रिश्तों के धागे ध्यान से पिरोने जरूरी होते हैं ... वर्ना उघड़ जाते हैं ...
ReplyDeleteभावपूर्ण गहरी रचना ...