जब तू आए
मेरे आंगन में
जीवन का अंतिम
मधुमास हो---
दुल्हन सी काया हो
सकुचाई सी बांहे हों
पलकों पर मेरे--तेरे होठों की
स्निग्ध-प्रेम की आभा हो
जीवन के उढके दरवाजे पर
भोर का सूरज---
नारंगी हो
बासंती झोंको से
लहराता मेरा आंचल हो
कुछ फूल रह गये जो
अधखिले---उन पर भी
कल की आशाओं के
भंवरों की आवा-जाही हो
कलियों के कलशों पर
कलई चढाएं---
तितलियां
अपने सतरंगो की
जब तू आए
मेरे आंगन में
पतझड के पातों पर,पाती
प्रेम पगे---पनुहारों में
पहुंचेगे पग-पग-पर(तेरे)
पढ लेना उनको भी
पलकों से छूकर
उनको भी---
जब तू आए
मेरे आंगन में
जितना प्रेम किया,तूने
मुझसे---
सो गुना कर-- ले आऊंगी
हर-एक चुंबन के
तेरे
हजार छाप
दे जाऊंगी
बस,
जब तू आए
मेरे आंगन में
जीवन का अंतिम
मधुमास हो.
दुल्हन सी काया हो
ReplyDeleteसकुचाई सी बांहे हों
पलकों पर मेरे--तेरे होठों की
स्निग्ध-प्रेम की आभा हो.....................बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...आभार पढ़वाने के लिए!
वाह .. मिलन का अंतिम गीत या चिरमिलन की शुरुआत ... उस माया से जो इसका रचियता है ...
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना...बधाई
ReplyDeleteलाजवाब
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