जो भी व्यक्ति----
१.जो भी व्यक्ति प्रसिद्धि और सफलता के नशे से मुक्त होकर
साधारण लोगों की भीड में खो जाता है वही व्यक्ति सभी की दृष्टि से दूर ’ताओ’
प्रपात की भांति कल-कल करता हुआ बहेगा.
२.ताओ को जानने वाला व्यक्ति जहां कहीं भी रहता है---वह परम
शांति और सहजता से रहता है.
३.केवल ताओ को जानने वाला व्यक्ति नर्क को स्वर्ग में बदल
सकता है.
आइये-- -कुछ सरल-सीधी-सच्ची सी बात करें---कुछ देर ठहर
जायं--- कुछ देर कुछ ना करें???
मन की चाल को अपनी ही चालबाजी से परास्त करें???
आएं ’ताओ’ को पुनर्जीवित करें.
ओशो—पूरा संसार ही अनावश्यक कार्यों में जुटा हुआ
है-----५०% कारखाने वस्तुतः स्त्रियों शरीर के लिये नये-नये परिधान बनाने में जुटे
हुए हैं---और प्रसाधन सामग्री बनाने में व्यस्त हैं.
५०% कारखाने व्यर्थ की चीजें बनाने में लगे हुए हैं जबकि
मनुष्यता भोजन के आभाव में मर रही है.
चंद्रमा पर पहुंचना पूरी तरह गैरजरूरी है.(मैं पूरी तरह
सहमत हूं )
पूरी तरह से बेवकूफी है----युद्ध पूरी तरह से अनावश्यक हैं----लेकिन
मनुष्यता पागल है.
केवल ताओ को जानने वाला व्यक्ति नर्क को स्वर्ग में बदल
सकता है---
इस सत्य को कहते हैं एक कहानी के माध्यम से---जो ओशो ने इस
तरह कही---
(कहानी तो ओशो ने कही—लेकिन मैं उसे कुछ कांट-छांट कर कहने
का दुःसाहसन कर रही हूं-क्षमाप्रार्थी हूं)
एक चर्च का एक पादरी मरने के बाद जब स्वर्ग पहुंचा तो वहां
के राजसी ठाठ-बाट देख कर वह मंत्रमुग्ध हो गया.
किसी भी चीज की इच्छा मात्र से उसकी वह इच्छा पूरी हो जाती.
एक-दो दिन तो सब कुछ ठीक रहा.अगले दिन से उसे कुछ असुविधा
होने लगी.
वह धर्म पुरोहित बैचेन होने लगा.मरने के पहले वह बहुत सक्रिय
था.आराम भी कितना किया जा सकता है.देर-अबेर छुट्टी का अंत होना ही था.
अचानक एक सेवक हाजिर हुआ---उसने पादरी को बहुत बैचैन देखा.
पूछा कि आखिर आप चाहते क्या हैं?
पादरी ने कहा—मैं हमेशा-हमेशा खाली तो नहीं रह सकता मुझे
कुछ करने के लिये चाहिये.
सेवक ने उत्तर दिया---यह तो ना-मुमकिन है.
पादरी क्रोधित हो कर बोला--- यह किस प्रकार का स्वर्ग है?
सेवक ने उत्तर दिया—कौन कहता है यह स्वर्ग है यह तो नर्क
है.
ओशो—तुम्हें व्यस्त रखने के लिये तुम्हारे पागलपन के लिये
तुम्हें अनावश्यक चीजों की जरूरत होती है इसलिये चंद्रमा भी पर्याप्त नहीं
है----हम मंगल ग्रह को खोदने जा ही रहे हैं.
ताओ को जानने वाला व्यक्ति---अपने -आप में आंनदित होता
है,उसकी सक्रियता भी निष्क्रियता जैसी ही होती है.
केवल ताओ को जानने वाला व्यक्ति ही नर्क को स्वर्ग बना सकता
है.
पुनःश्चय:
इस कहानी को कहने का मेरा आशय यह कतई नहीं है—कि हम
कर्म-योग को त्याग दें---और चार्वाकीय प्रवृति में लिप्त हो जांय?
वरन---कभी-कभी कुछ करने में से कुछ ना करने को भी खोजें
ताकि खुद को खोज सकें
(साभार संकलित—संसार और मार्ग—ताओ-पथ—क्षण-क्षण भरपूर जीवन—उद्धरित
ओशो के प्रवचनों से)
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteनई पोस्ट : तुलसीदास की प्रथम कृति - रामलला नहछू
सुन्दर और सार्थक ...
ReplyDeleteसारगर्भित पोस्ट |आभार
ReplyDeleteकर्म ही जीवन है ... सारगर्भित पोस्ट है ...
ReplyDeleteवाह...लाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteऔर@जा रहा है जिधर बेखबर आदमी