Life is a gift, birth is a gift, love is gift,
death is a gift---Be grateful to the Existence.
And without
gratefulness---there is no prayer.
Without prayer---there
is no religion. osho.
कुछ पुनरावृतियां जरूरी
हो जाती हैं---दुबारा जुडने के लिये,बेहतर समझ के लिये,सुंदर कहने के लिये और----?
एक वर्ष पूर्व(क्षमा करें
अब समय तीन वर्ष से अधिक)फरवरी माह,दिनांक २३,एक घटना घट गयी (मन के-मनके).
जो माध्यम मृगमरीचिका की
भांति आस-पास था,वह कस्तूरी सा मुट्ठी में आ गया.
कुछ अंश—
हां यह सत्य है---जीवन के
हर रंग ने मेरी उंगलियों की पोरों को छुआ अवश्य है.
उनमें से कुछ रंग चटकीले
थे---कुछ इंद्रधनुष की छटा लिये हुए—कुछ बदरंग भी थे.
जीवन के केनवास को रंगा
भी और भरपूर निहारा भी.
स्वाभाविक है,जब राह
के---मील के पत्थर पार कर लेते हैं---सुस्ताने के लिये ठहर भी जाते हैं---
इसी प्रक्रिया में—स्वर्ग-नर्क,ईश्वर-अनीश्वर----उजागर
होने लगते हैं.
’बिखरे हैं-स्वर्ग’---एक
खोज,उस स्वर्ग की जो हमारी मुट्ठी में बंद है---
स्वर्ग क्या है???
ओशो की मीमांसा---जीवन एक
उपहार है,जन्म एक उपहार है,म्रुत्यु एक उपहार है----
उस आस्तित्व को नमन—जिसने
हमें पात्र माना और अनुगृहित किया.
सिर झुक गया—प्रार्थना
स्वीकार हो गई.
और---ईश्वर मिल गया.
और---स्वर्ग बिखर
गये----चारों ओर!!!
तुम---
कब आए?
कोई आहट
भी नहीं
तुमने---
दरवाजा भी
उढकाया नहीं
पैरों की आहट
क्या कांठी में
दबा ली थी?
सांसो की
गर्माहट
क्या सांसों
में
पी ली थी?
तुमने---
मेरा तकिया
सरकाया तो होगा?
तुमने---
ओढी हुई
चादर को
थोडा हटाया तो होगा?
सुबह जब—
सूरज की किरणों ने
दस्तक दी---
चिडियों की स्वर-लहरी
मेरी बंद पलकों को
फढका गई—
और—
एक हाथ जब
तकिये के नीचे
अंगडाई ले रहा था
मुट्ठी में---
एक और पैगाम
कागज की चिट्ठी में
मेरे नाम---
आ गया!!!
मुझे पता है---
कल भी---
तुम---
इस तरह ही
आओगे—
और---मेरी
मुस्कुराहटों को
गुलाबी कर जाओगे
मैं---
सोती रही हूं
जागने के लिये!!!
पुनःश्चय:
तलाश एक स्वर्ग की
नदी की बहती धार सी
अतृप्त प्यास के
दो किनारों की तरह
निरंतर---
धार सी बह रही
किनारों को पाने की चाह
में
विस्मृत किया---
इंसान को
और---
दो किनारों के बीच
छलकता स्वर्ग—
अंजुलि से छिटक कर
नजरों से ओझल हो रहा
स्वर्ग तो---
जन्म से—
निरंतर,
साथ बह रहा
अनवरत—
बस---
हाथों की अंजुलि में भर
होठों तक---
लाना है—
उसे,
मुंदी आंखों में---
देखे सपने की तरह
खुली आंखों से---
पाना है—
उसे,
बिखरे हैं—
स्वर्ग,
चारों तरफ!!!
आलोकिक ... असीम ... अनंत की और ले जाती हुयी पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...अर्थपूर्ण
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