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cannot repay the Lord.What can do is—To pray.
जब तपिश-- बरसी धरती पर
जब धरती चटकी---
चटटानों सी
जब बीज हुए स्वाहा
दुर्भिक्ष के हवन-कुंडों में
जब पेट लगे पीठों से
नमी-- आंखों की,जब
रेत हुई रेगि्स्तानों की
जब आसमान भी धधका
सागर भी फुफकारा
धरती भी भटकी
बंजारिन सी----
तब----
तू बरसा---जीवन सा
तू बना—दिशा-चिन्ह
जब मौत हुई डायन सी
रुदन—जन्में कोखों से,जब
जननी भी बांझ बनी
कोखों का-- कर रही मर्दन
तब-----
तू पुलका---जीवन सा
कोखों में—किलकारी सा
जब रिश्तों की गर्माहट
वि्तष्णाओं के अंगार बने
जब आशाओं के खिले फूल
पतझड की भेंट चढे
जब चेहरों की सिलवट में
अपनों के रक्त जमें
जब अपनों ने ही अपनों के
शीश---धडों से अलग किये
जब अपनी ही धरती पर
दीवार चिनी----
मनमानी ने--सीनाजोरी से
जब आसमानों से आग गिरी
धरती भी लाल हुई---
कल के सपनों से
तब-----
तू महका—चंदन सा
गूंजा ईश्वर सा
मंदिर में---
गुरुद्वारों में--
मस्जिद की आजानों में
मरियम के सीने से चिपके
ईसा की-- किलकारी में
हम नहीं हो पाएंगे
रिण-मुक्त---
कृपण—अवश्य ही हो पाएंगे
तुझको सुनने में---
तुझको गुनने में—
स्वम में ही तिष्ठ-- तुझे
देख नहीं हम पाएंगे?
हे प्रभु---
हम कृपण---
तू दानी,
तू निर्मल---
हम,खारा पानी
तू सहज---
हम,विकल
तू कमल---
हम पंक
हे प्रभु---
तू श्रंग-तुंग-हिमाच्छादित
हम,घाटी भटकन की
तू फैला सागर—अनंत
हम खारी—एक बूंद
तू अमृत का स्वर्ण-कलश
हम मृत्यु की छाया भर
तू, विराट—हम क्षुद्र
तू आशा की सहस्त्र किरण
हम विफलताओं का अंधाधुंध
हे प्रभु---
अब तक इतना ही जाना है
जो भी हैं,जैसे भी हैं
तेरे हैं---तेरी भूल ही सही
तेरी रचना का—एक गहन-बिंदु ही सही
तेरे खींचे चित्र का पटाक्षेप ही सही
पर बिन इसके---
रचना तेरी भी—कब-कैसे होगी पूर्ण-अंत
हे प्रभु---
जैसे हमने स्वीकारा है तुझको
बिन जाने---बिन पहचाने
तू भी हमको---- (प्रस्तुत चित्र--साभार गूगल से)
स्वीकार—बस---स्वीकार कर
हे प्रभु----
वाह्ह्हह्ह ..... मनमुग्ध हो गया रचना पढ़ कर
ReplyDeleteअति सुंदर और भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteअति सुंदर और भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
सादर --
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
तब-----
ReplyDeleteतू महका—चंदन सा
गूंजा (गूंजा )ईश्वर सा
मंदिर में---
गुरुद्वारों में--
मस्जिद की आजानों (अजानों )में
मरियम के सीने से चिपके
ईसा की-- किलकारी में
हम नहीं हो पाएंगे
रिण-मुक्त---
कृपण—अवश्य ही हो पाएंगे
तुझको सुनने में---
तुझको गुनने में—
स्वम में ही तिष्ठ--(तुष्ट ) तुझे
देख नहीं हम पाएंगे?
तू श्रंग-तुंग-(श्रृंग तुंग )हिमाच्छादित
हम,घाटी भटकन की
सुन्दर रचना भाव और अर्थ सौंदर्य लिए प्रभु तुम चंदन हम पानी।
हम सेवक तुम स्वामी
मेरे औगुन चित न धरो
सुन्दर स्तुति .... उन चरणों में हमें शरण मिले .....
ReplyDeleteसार्थक लेखन हमेशा की तरह
ReplyDeleteअसीम शुभ कामनायें
प्रभावी रचना...
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर , धन्यवाद !
ReplyDeleteअगर संभव हो तो -
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteThanks to all who come on Man ke-Manke and make me feel fulfilled and inspire to express more in sustance.Pl be on Man Ke-Manke as ever.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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