Saturday 13 April 2013

मेरी डायरी का---एक पन्ना


         
                    मेरी डायरी का---एक पन्ना
आज का दिन---कुछ अच्छा नहीं गया
यह,एक पन्ना है--- मेरा डायरी का
                 जहां,दो शब्द में---कह दी होती,दो बात पूरी
                 वहां---गलियों में---घूम-घूम,पोथी क्यों वांची
जहां---रिश्तों की,तह बना-बना कर
चीथडे कर दिये---रिश्तों के----
                 वहां---रिश्तों की,एक ही तह काफ़ी थी
                 तकिये के नीचे रख----रिश्तों को,सींचने के लिये
जहां---अपने ही काफ़ी थे,हम-साया,बनने के लिये
वहां---मुंडेरों पर,बैठे,कौवों को,टुकडा क्यों डाला
                  जहां---एक रोटी ही काफ़ी थी,चार पेट, भरने के लिये
                  वहां--- सोने के सिक्के---भीख में,क्यों मांगे
बात---समझने की है,मन की, मन से
शब्दों की बिसात--- बिछानी, क्या जरूरी है
                   एक फूल ही--- काफ़ी है,पूजा की थाली में
                   मंदिरों की ड्योढी पर,माथा लगाना,क्या जरूरी है
आंख झुका---सिर नवाना, काफ़ी है
दिले-यार के----दीदार के लिये---
                    आज का दिन---कुछ अच्छा नहीं गया
                    यह एक---पन्ना है,मेरी डायरी का


2 comments:

  1. १९२६, डायरी में लिखना मन हल्का कर जाता है।

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  2. वाह.....क्या खूब लिखा है आपने उर्मिला जी ....
    ये ही तो जीवन के सच हैं....
    धन्यवाद....

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