मेरी डायरी का---एक पन्ना
आज का दिन---कुछ अच्छा नहीं गया
यह,एक पन्ना है--- मेरा डायरी का
जहां,दो शब्द में---कह दी होती,दो बात पूरी
वहां---गलियों में---घूम-घूम,पोथी क्यों वांची
जहां---रिश्तों की,तह बना-बना कर
चीथडे कर दिये---रिश्तों के----
वहां---रिश्तों की,एक ही तह काफ़ी थी
तकिये के नीचे रख----रिश्तों को,सींचने के लिये
जहां---अपने ही काफ़ी थे,हम-साया,बनने के लिये
वहां---मुंडेरों पर,बैठे,कौवों को,टुकडा क्यों
डाला
जहां---एक रोटी ही काफ़ी थी,चार
पेट, भरने के लिये
वहां--- सोने के सिक्के---भीख में,क्यों मांगे
बात---समझने की है,मन की, मन से
शब्दों की बिसात--- बिछानी, क्या जरूरी है
एक फूल ही--- काफ़ी है,पूजा की
थाली में
मंदिरों की ड्योढी पर,माथा
लगाना,क्या जरूरी है
आंख झुका---सिर नवाना, काफ़ी है
दिले-यार के----दीदार के लिये---
आज का दिन---कुछ अच्छा नहीं
गया
यह एक---पन्ना है,मेरी डायरी
का
१९२६, डायरी में लिखना मन हल्का कर जाता है।
ReplyDeleteवाह.....क्या खूब लिखा है आपने उर्मिला जी ....
ReplyDeleteये ही तो जीवन के सच हैं....
धन्यवाद....