क्योंकि, यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार
है
जो, मुझसे कोई छीन नहीं सकता है—
मुझसे
मेरा घर छीना जा सकता है
मेरी दो रोटी, आलू
की सब्जी के साथ
भी छीनी जा सकती
है---
मेरी अस्मत,मेरा
सम्मान भी(पेट भरने के लिये)
पहले भी बहुत कुछ छीना जा चुका है
बोलने का अधिकार----
दफ़्तरों में काम करवाने का अधिकार
आवेदन देने का अधिकार—
काम न होने पर---
शिकायत करने का अधिकार
बढती कीमतों पर
सवाल करने का अधिकार
सडक पर,सुरक्षित
चलने का अधिकार—
सताए जाने पर
एफ़.आई.आर दर्ज़ करवाने का अधिकार
उम्र को सडक के
किनारे फेंक,छेडे जाने पर
किसी से मदद
मांगने का अधिकार---
लिस्ट बहुत लंबी है----
परंतु,राहत भी है एक अधिकार तो हमें मिला—१८ वर्ष पूरे होने पर
हम अपनी पसंद का उम्मीदवार चुन सकते हैं—जो चुने जाने पर दिल्ली चले जाते हैं और
पांच वर्ष के लिये व्यस्त हो जाते हैं—देश की नांव सुनामी से बाहर निकालने
में,क्या करें बेचारे!
एक बात रह गई मेंशन करने के लिये—
अभी कल ही केंद्रीये कर्मचारियों
को ( जिसने में पेंशन भोक्ता भी हैं,सौभाग्यवश मैं भी लिस्ट में शामिल हूं) ७%
मंहगाई भत्ता घोषित कर दिया गया है.
इतने घावों पर ७% मरहम.
धन्यवाद,
इसलिये,मैं मौन हूं----
मैं लाभ पाने वालों में हूँ, अतः मौन हूँ..
ReplyDelete......जबर्दस्त!!
ReplyDeleteक्या करें...मौन ही रहें...
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